ठण्ड का प्रचंड रूप आज कहीं जायो रे मन में उल्लास लिए आज कोई आयो रे जवां दिलों भी अब नया अहसास जागे है पञ्च तत्त्व आज जाने क्यूँ अपना लागे है आज पवन क्यूँ अपनी ठिठुरन को छोड़े है आज रवि क्यूँ अपनी …
ये दुनिया तालाब की जैसी थोड़ा सा थम जाने दो | निर्मल जल रह जाये ऊपर कचरा नीचे जम जाने दो || कमल बीज एक पड़ा तलहटी , मचले बाहर आने को | सारी गन्दगी जमी है नीचे, है मुश्किल है तहखाने में || ह…
अँधियारो को चीर के देखो एक परिदा आया था | जन जन को विश्वाश दिलाकर सबके मन को भाया था || देश के बंटवारे से दुखी वो फूट फूट कर रोया था | स्वच्छ राजनीती सिखाने को…