मंगल दोष का भ्रम

मंगल दोष का भ्रम

 


कंप्यूटर इंटरनेट और मोबाइल ऐप्प ने आजकल मानव जीवन के हर पहलू को प्रभावित किया है। यहाँ हम ज्योतिष के उन कुछ खास बिन्दुओ पर बात करेंगे जहां इंटरनेट या मोबाइल ऐप्प पर उपलब्ध सीमित जानकारियों से मानव जीवन प्रभावित हो रहा है। 

वैवाहिक जीवन में प्रवेश करने से पहले जब कुंडली मिलान किया जाता है तो उसमे मंगल ग्रह को सबसे बड़े खलनायक के रूप में दिखाया जाता है।  बहुत से साधारण जानकारी रखने वाले लोग भी कुंडली के पहले, चौथे, सातवें, आठवें और बारहवें भाव में मंगल को देखकर तुरंत कुंडली को मांगलिक करार देते हैं। दक्षिण भारत में दूसरे भाव में भी मंगल का होना अच्छा नहीं माना जाता।    

जैसे कि हम जानते हैं कि मंगल कि तीन दृष्टियाँ होती हैं चौथी, सातवीं और आठवीं।  लग्न में बैठ कर मंगल चतुर्थ सप्तम और अष्टम भाव को प्रभावित करता है।  जातक थोड़ा गुस्सैल स्वाभाव का हो सकता हैं और वैवाहिक जीवन में थोड़ा उठापटक दे सकता है।  चतुर्थ भाव में होकर उच्च रक्त चाप दे सकता हैं, चौथी दृष्टि से दाम्पत्य के भाव को प्रभावित करता है।  सप्तम अष्टम और बारहवे भाव में वैवाहिक जीवन को प्रभावित करने कि छमता है। दूसरा भाव परिवार और वाणी का हैं यहाँ बैठकर मंगल वाणी में कठोरता देता हैं या परिवार में थोड़ा वैमनस्य कि सम्भावना बनाता है।  सतही तौर पर कुछ इसी तरह की सम्भावना लगेगी|

मित्रो ज्योतिष शास्त्र एक बहुत ही गंभीरता से शोधन का विषय है।  आइये देखते हैं की मंगल ग्रह के कार्यकत्व क्या हैं?

मंगल काल पुरुष की कुंडली का लग्नेश है।  यह जातक के शरीर को दिखाता है।  तीसरे भाव का कारक होकर छोटे भाई, बहनों का सुख देता है।  छठवें भाव का कारक होकर जातक की संघर्ष शीलता को बढ़ता हैं तो दसवें भाव का कारक होकर आदमी को असंभव कार्य को संभव में बदलने की क्षमता देता है।  चौथे भाव का कारक होकर जातक को भूमि सुख देता है। नाड़ी ग्रंथो में महिलाओँ के पति से सम्बंधित सुख का कारक मंगल को बताया जाता है।

हनुमानजी या कार्तिकेय को मंगल ग्रह के देवता का पद प्राप्त है। 

अब सवाल उठता हैं कि इतने सारे महत्वपूर्ण कार्यो का कारक होकर मंगल अमंगल कैसे कर सकता है। जिसके नाम में मंगल हो जो पराक्रम का कारक हो उसे अकारक कैसे माना जा सकता है?

आइये कुछ ऐसे ही परिस्थितियां बताते हैं जहां मंगल किसी तरह का नुकसान नहीं करता। 

१) मंगल देवताओं का सेनापति होकर गुरु का सम्मान करता है इस लिए जिसका मंगल गुरु कि राशियों जैसे कि धनु या मीन में होकर १, ४, ७, ८, या १२ भाव में हो उनको कोई हानि नहीं की सम्भावना नहीं होती। 

२) मंगल पराक्रम का कारक है वह अपने खुद की राशियों मेष और वृश्चिक में होकर इन भावों में भी शुभ परिणाम देता है। 

३) शनि की मकर राशि में होकर मंगल उच्चता को प्राप्त करता है अतः अगर आपका मंगल मकर में है तो यह शुभ है। 

४) मंगल चन्द्रमा की राशि कर्क में भी शुभ परिणाम देता है। 

५) इसी तरह से मगल बुध और शुक्र की राशियों में भी उतने बुरे परिणाम नहीं देता।  

साथ में यह भी देखें कि मंगल किन भावों का स्वामी है।  अगर त्रिकोण का स्वामी है तो शुभ है।  केंद्र का स्वामी है तो सम है।  जाँच ले कि मंगल किस ग्रह के नक्षत्र में है और इसकी नवांश में कैसी स्थिति है। सारे पहलुओं को ध्यान में रखकर तभी कुंडली मिलान करें।

अंत में एक बात हमेशा ध्यान में रखें कि भगवान कृष्ण ने गीता के चौथे अध्याय में १९ वे श्लोक में कहा है कि -

यस्य सर्वे समारंभ: कामसंकल्पवर्जिता: |

ज्ञानाग्निघकर्माणं तमहुः पण्डितं बुधः ||

प्रबुद्ध ऋषि उन व्यक्तियों को बुद्धिमान कहते हैं, जिनका प्रत्येक कार्य भौतिक सुखों की इच्छा से मुक्त है और जिन्होंने काम की प्रतिक्रियाओं को दिव्य ज्ञान की अग्नि में जला दिया है।

अतः कुंडली का मिलन शास्त्र सम्मत विधि से करें जिससे जातक के जीवन में तारतम्य, सुख और समृद्धि बनी रहे।

ॐ तत सत


Post a Comment

1 Comments

  1. It was my belief that Mars is always a bad factor. Today, after reading this article, I feel that Mars brings success in many tasks and it is also good....
    Thank you bhaiya ji🙏🙏🙏

    ReplyDelete

Please do not enter any spam links in the box