हर की पौढ़ी में शुद्ध हुआ, फिर देव भूमि में किया प्रवेश
कोई कहता है इसे योग नगरी, कोई कहता है ऋषिकेश
शिवनन्दाश्रम से वापस आ ओमकारानंदाश्रम में वास मिली
गंगा मैया की धवल धार से खुद को पाने की आश खिली
राम झूला खुद झूलता है लेकिन कितनो को पार कराता है
कितने सारे ऋषि मुनियों के आश्रम को ये दिखलाता है
राम जानकी सेतु में देखें ऋषिकेश का आधुनिक रूप
गंगा मैया के इस रूप के लिए देखें मिट गए कितने भूप
आज दिखे जो इन आंखो से उसके पीछे क्या छाया है
इस चकाचौंध के पीछे का इतिहास कहाँ से आया है
राजा सगर की भक्ति का इतिहास जरा तुम याद करो
सौवें अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े का थोड़ा ही तो विश्वास करो
कोई कहता है इसे योग नगरी, कोई कहता है ऋषिकेश
शिवनन्दाश्रम से वापस आ ओमकारानंदाश्रम में वास मिली
गंगा मैया की धवल धार से खुद को पाने की आश खिली
राम झूला खुद झूलता है लेकिन कितनो को पार कराता है
राम जानकी सेतु में देखें ऋषिकेश का आधुनिक रूप
गंगा मैया के इस रूप के लिए देखें मिट गए कितने भूप
आज दिखे जो इन आंखो से उसके पीछे क्या छाया है
इस चकाचौंध के पीछे का इतिहास कहाँ से आया है
राजा सगर की भक्ति का इतिहास जरा तुम याद करो
सौवें अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े का थोड़ा ही तो विश्वास करो
देवराज ने कुटिलतावश खुद जिसे कपिलमुनि केआश्रम में छिपाया था
राजा सगर के साठ हजार पुत्रो को मुनि की क्रोधाग्नि में भस्म कराया था
फिर पौत्र अंशुमान ने मुनिवर से घोर प्रार्थना की
मुनि श्रेष्ठ ने फिर गंगा को लाने की एक तमन्ना दी
फिर घोड़ा लाकर उस बालक ने अश्वमेघ यज्ञ संपन्न किया
कठिन तपस्या से उसने गंगाजी को लाने का भी प्रयत्न किया
हालांकि सफलता नहीं मिली तब वे परलोक सिधारे थे
कुछ इसी तरह की कोशिश में राजा दिलीप भी वारे थे
अगली पीढ़ी में राजा भागीरथ की तपस्या की न हार हुई
उस घोर तपस्या से प्रसन्न हो गंगा माँ आने को तैयार हुई
पूछी बेटे मैं चलती हूं पर इतना तो जरा विचार करो
मेरे बेग को सहने को शिवशंकर को भी तैयार करो
फिर भगीरथ ने अपनी तपस्या से शिव शंकर को तैयार किया
मुनियों के रक्षक शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में अभिसार किया
ऋषिकेश की समतल भूमि से गंगा मां मैदानों में आई
आगे चले भगीरथ का रथ पीछे पीछे गंगा मैया धाई
फिर हरिद्वार, प्रयाग काशी से सागर को पहुंची मैया
ऋषि श्राप से मुक्त हुए पुरखे पार हुई उनकी नैया
गंगा न सिर्फ मुक्ति दायनी हैं ये बड़े संकल्प की कहानी हैं
हमारे पुरखों की कठिन तपस्या और संकप की निशानी हैं
राजा सगर के साठ हजार पुत्रो को मुनि की क्रोधाग्नि में भस्म कराया था
फिर पौत्र अंशुमान ने मुनिवर से घोर प्रार्थना की
मुनि श्रेष्ठ ने फिर गंगा को लाने की एक तमन्ना दी
फिर घोड़ा लाकर उस बालक ने अश्वमेघ यज्ञ संपन्न किया
कठिन तपस्या से उसने गंगाजी को लाने का भी प्रयत्न किया
हालांकि सफलता नहीं मिली तब वे परलोक सिधारे थे
कुछ इसी तरह की कोशिश में राजा दिलीप भी वारे थे
अगली पीढ़ी में राजा भागीरथ की तपस्या की न हार हुई
उस घोर तपस्या से प्रसन्न हो गंगा माँ आने को तैयार हुई
पूछी बेटे मैं चलती हूं पर इतना तो जरा विचार करो
मेरे बेग को सहने को शिवशंकर को भी तैयार करो
फिर भगीरथ ने अपनी तपस्या से शिव शंकर को तैयार किया
मुनियों के रक्षक शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में अभिसार किया
ऋषिकेश की समतल भूमि से गंगा मां मैदानों में आई
आगे चले भगीरथ का रथ पीछे पीछे गंगा मैया धाई
फिर हरिद्वार, प्रयाग काशी से सागर को पहुंची मैया
ऋषि श्राप से मुक्त हुए पुरखे पार हुई उनकी नैया
गंगा न सिर्फ मुक्ति दायनी हैं ये बड़े संकल्प की कहानी हैं
हमारे पुरखों की कठिन तपस्या और संकप की निशानी हैं
जब भी कभी समय निकले इन बातों पर गहन विचार करो
अगर कभी जरूरत पड़ जाए तो खुद को भी तैयार करो
आज कोई नौकायन, कोई स्नान ध्यान में अपनेपन को पाता है
इसी तरह हर किसी का देवभूमि से कुछ अपना अपना नाता है
अगर कभी जरूरत पड़ जाए तो खुद को भी तैयार करो
आज कोई नौकायन, कोई स्नान ध्यान में अपनेपन को पाता है
इसी तरह हर किसी का देवभूमि से कुछ अपना अपना नाता है
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