कुछ दिन पहले एक वेबसाइट पर विश्व के प्रमुख देशों में वैवाहिक सफलता के बारे में बड़ी रुचिकर जानकारी मिली| इस जानकारी के अनुसार भारत में लगभग ९९% शादियां सफल मानी जाती हैं| केवल १% शादियां ही असफल होती हैं| जाहिर सी बात है कि शादियो की सफलता का कोई सर्वमान्य नियम नहीं है इसलिए इसको निकालने के लिए तलाक के आंकड़ों का विश्लेषण करना होगा | इन आंकड़ों के अनुसार विश्व के प्रमुख देशों में तलाक के मामले इस तरह हैं|
देश |
तलाक
(प्रतिशत) |
स्वीडन |
54.90 |
अमेरिका |
54.80 |
रूस |
43.30 |
ब्रिटेन |
42.60 |
जर्मनी |
39.40 |
इस्रायल |
14.80 |
सिंगापूर |
17.20 |
जापान |
1.90 |
श्रीलंका |
1.50 |
भारत |
1.10 |
Source - https://tinyurl.com/yckc53de
यह
जानकारी बड़ी सुखद और संतोषप्रद लगती है लेकिन इसके साथ कुछ चिंता की भी बातें हैं|
इस वेबसाइट के अनुसार पिछले दशक से तलाक के मामले बहुत अधिक बढ़ रहे हैं| ग्रामीण भारत
की अपेक्षा नगरीय क्षेत्रों में तलाक एक सामाजिक चिंता का विषय है| चिंता का विषय इसलिए है क्यूकि
तलाक जैसी कोई व्यवस्था भारतीय इतिहास में कभी थी ही नहीं|
इस
मुद्दे पर एक विचार गोष्ठी में एक महिला मित्र ने कहा कि भारतीय समाज एक पुरुष प्रधान
रहा है| स्त्रियों का शिक्षा का स्तर बहुत कम था और उनके वित्तीय अधिकार या आय के श्रोत
नहीं थे इसलिए वे न चाहते हुए भी साथ रहने को विवश थी| अतः तलाक का प्रतिशत बहुत कम
था| अब जैसे जैसे महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं वैसे वैसे, प्राचीन बंधन भी कमजोर
पड़ते जा रहे हैं और लोग अपनी मर्जी से अपनी जिंदगी जीने को स्वतंत्र हैं अतः तलाक के
मामले बढ़ रहे हैं| धीरे धीरे इंडिया में भी तलाक आम बात हो जाएगी|
एक
बार तो सतही स्तर से देखने पर बात सही लगी लेकिन विचार करने पर बड़ा विरोधाभास नजर आया
और निम्न प्रश्न मन में आने लगे|
१-
क्या सचमुच भारतीय समाज केवल पुरुष प्रधान समाज रहा है?
२-
क्या हमारी गौरवशाली परम्पराये स्त्रियों को तकलीफ देती थी ?
३-
क्या सचमुच भारतीय स्त्रियों के आर्थिक अधिकार नहीं थे?
४-
क्या हमारे संस्कार बंधन की तरह काम करते हैं?
5-
क्या हमारे संस्कार तलाक जैसी प्रथा को रोक
पाने में सक्षम नहीं हैं ?
6-
क्या शिक्षा का विस्तार और आर्थिक समृद्धि तलाक जैसी कुप्रथा को बढ़ावा देगी और देश
का माहौल ख़राब करेगी ?
7-
अगर इन सवालों के जबाब हां में हैं तो हमें बहुत पहले और देशों के स्तर पर पहुँच जाना चाहिए था| और अगर जबाब न में हैं तो तलाक के बढ़ते मामलों की असली वजह क्या है?
जाहिर
है हर माँ बाप के लिए यह संकेत बहुत कष्ट प्रद है| शिक्षा से समृद्धि आती है उससे खुशहाली
आनी चाहिए न की विकृति | इन्ही प्रश्नो का उत्तर पाने के लिए हमें एक बार के लिए अपने
शास्त्रों का अध्ययन करना पड़ा| वैदिक रीति रिवाजों का विश्लेषण करने पर हमें परिणाम
एकदम विपरीत नजर आये|
क्या सचमुच भारतीय समाज पुरुष प्रधान रहा है?
इस
विषय को समझने के लिए आपको ऋग्वेद के निम्न सूक्तम का अध्ययन करना चाहिए -
१-
आत्मा सूक्तम
२-सावित्री सूक्तम और
३-
सरस्वती सूक्तम
मानव
जीवन के शुरुवात की पहली पुस्तक में तीन तीन अध्याय नारी शक्ति पर होना नारी शक्ति
के सम्मान और उनकी महत्ता बताने के लिए क्या पर्याप्त नहीं है?
जिस
देश के इतिहास में गार्गी, मैत्रेयि, सीता, मंदोदरी, मणिकर्णिका, द्रौपदी, तारा ,अहिल्या,
राधा, मीरा, दुर्गावती, रानी रश्मानी जैसी अनगिनत महिलाओं को पढ़ाया जाता हो| जिस देश में आधुनिक समय
में भी इंदिरा, सुषमा, जयललिता, ममता, कल्पना, सानिया, मैरीकॉम और सिंधु जैसी महिलायें अपने क्षेत्रों
में उत्कृष्ट रही हों वहां महिलाओं से अन्याय कैसे हुआ होगा |
उपरोक्त
उदाहरणों से प्रतीत होता है कि भारतीय साहित्य में स्त्रियों और पुरुषो को समान रूप
से महत्त्व दिया गया है|
अगर
आप शादीशुदा हैं तो आपको स्वयं याद होगा और नहीं हैं तो विवाह के समय दिए जाने वाले
बचन "सप्तपदी" को समझने का प्रयास करें जिसमे वर कन्या को वचन देता है की
तीर्थव्रतोद्यापन
यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:,
वामांगमायामि
तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी !!
यहाँ
कन्या वर से पहला वचन मांग रही है कि यदि आप कभी तीर्थयात्रा करने जाएं तो मुझे भी
अपने संग लेकर जाइएगा. यदि आप कोई व्रत-उपवास अथवा अन्य धार्मिक कार्य करें तो आज की
भांति ही मुझे अपने वाम भाग (बांई ओर) में बिठाएं. यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो
मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ |
इससे
यह प्रतीत होता है की महिलाओं को सभी प्रकार के धार्मिक अधिकार प्राप्त थे| बिना उनके
कोई भी पूजा, पाठ, धर्म, कर्म पूर्ण नहीं होता|
क्या हमारी परम्पराएँ स्त्रियों के लिए कष्टप्रद थीं ?
अगर
आप भारतीय विवाह पद्धति को ध्यान से देखें तो पाएंगे की बहुत से धार्मिक संस्कारों
का प्रतिनिधित्व घर की महिलाएं ही करती हैं|
इसी
वजह से कन्या शादी के बाद धर्म पत्नी कहलाती है| शादी के अवसर पर ब्रह्म विवाह में
सप्त और षोडश मातृका पूजन की व्यवस्था है| भारतीय पद्धति के अनुसार विवाह के पश्चात्
स्त्री और पुरुष पूर्णता को प्राप्त करते हैं| इस लिए यह कहना कि वैवाहिक परम्पराएं
स्त्रियों के लिए कष्टप्रद थीं उचित नहीं प्रतीत होता|
यहाँ
पर विवाह में फेरों के समय ली जाने वाली निम्न सप्तपदी का ध्यान दिलाना चाहुँगा|
पुज्यौ
यथा स्वौ पितरौ ममापि तथेशभक्तो निजकर्म कुर्या:,
वामांगमायामि
तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं द्वितीयम !!
दूसरे
वचन में कन्या वर से मांग रही है कि जिस प्रकार आप अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं,
उसी प्रकार मेरे माता-पिता का भी सम्मान करें तथा परिवार की मर्यादा के अनुसार धर्मानुष्ठान
करते हुए ईश्वर भक्त बने रहें. यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में
आना स्वीकार करती हूँ.
ईमानदारी
से सोचिये अगर हर पुरुष इस वचन को निभाए तो रिश्तों में कितनी मिठास आ जाएगी? हर कोई
एक दूसरे का मजाक उड़ाने की बजाय एक दूसरे से प्रेम करेगा और दुनिया असली में स्वर्ग
बन जाएगी |
सप्तपदी
के अगले फेरे में कन्या वचन लेती है कि -
जीवनम अवस्थात्रये मम पालनां कुर्यात,
वामांगंयामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं तृ्तीयं !!
तीसरे
वचन में कन्या कहती है कि आप मुझे ये वचन दें कि आप जीवन की तीनों अवस्थाओं (युवावस्था,
प्रौढ़ावस्था, वृद्धावस्था) में मेरा पालन करते रहेंगे. यदि आप इसे स्वीकार करते हैं
तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ|
सोचिये
अगर इस वचन को ईमानदारी से निभाया जाये तो क्या तलाक जैसी कुरीति इस सांस्कारिक देश
में अपनी जगह बना सकती है ? कभी नहीं|
स्कूल
में अगर कोई विद्यार्थी जिम्मेदारी से पढाई नहीं करता था तो अध्यापक कहते थे कि इसकी
शादी करा दो अपने आप सुधर जायेगा| सभी इस बात पर हंस पड़ते थे लेकिन हमें इसका आशय नहीं
समझ में आता था| सप्तपदी के इस वचन से इसका उत्तर मिला |
कुटुम्बसंपालनसर्वकार्य कर्तु प्रतिज्ञां यदि कातं कुर्या:,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं चतुर्थं !!
चौथे
वचन में वधू ये कहती है कि अब जबकि आप विवाह बंधन में बँधने जा रहे हैं तो भविष्य में
परिवार की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति का दायित्व आपके कंधों पर है. यदि आप इस भार
को वहन करने की प्रतिज्ञा करें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ.
किसी
गैर जिम्मेदार व्यक्ति को जिम्मेदार बनाने में विवाह की इस भूमिका को समझने का प्रयाश
करें| बहुत ही अनूठी मिशाल है | इसी लिए शायद भारतीय समाज में वर कन्या को शिव और शक्ति
के रूप में पूजा जाता है |
क्या भारतीय स्त्रियों के पास वित्तीय अधिकार नहीं थे ?
सप्तपदी का निम्न श्लोक इस आरोप का जबाब देने के लिए पर्याप्त लगता है|
स्वसद्यकार्ये व्यवहारकर्मण्ये व्यये मामापि मन्त्रयेथा,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: पंचमत्र कन्या !!
पांचवें वचन में कन्या कहती है कि अपने घर
के कार्यों में, विवाह आदि, लेन-देन अथवा अन्य किसी हेतु खर्च करते समय यदि आप मेरी
भी राय लिया करें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ.
इससे
जाहिर होता है की आर्थिक मामलों में सामूहिक निर्णय की प्रथा थी| अगर कोई बंधू इस बचन के पालन नहीं करते तो उन्हें सुधर जाना चाहिए|
क्या
हमारे संस्कार बंधन की तरह काम करते हैं?
अगले
पद में देखें कन्या क्या वचन लेती है|
न
मेपमानमं सविधे सखीनां द्यूतं न वा दुर्व्यसनं भंजश्चेत,
वामाम्गमायामि
तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं च षष्ठम !!
छठवें
वचन में कन्या कहती है कि यदि मैं कभी अपनी सहेलियों या अन्य महिलाओं के साथ बैठी रहूँ
तो आप सामने किसी भी कारण से मेरा अपमान नहीं करेंगे. इसी प्रकार यदि आप जुआ अथवा अन्य
किसी भी प्रकार की बुराइयों अपने आप को दूर रखें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार
करती हूँ.
जरा
सोचें सप्तपदी स्त्रियों के आत्मसम्मान का कितना ध्यान रखती है|
अगर आपने सप्तपदी के उपरोक्त वाक्यों को पढ़ा है तो आपको स्वयं महसूस हो रहा होगा की ये संस्कार बंधन की ओर ले जाते हैं या परस्पर विश्वास पूर्ण स्वतंत्रता की ओर| संसार में परस्पर समन्वय और जिम्मेदारी से बढ़कर कोई योग नहीं और भारतीय विवाह पद्धति इसमें पूर्ण सहयोग करती है|
क्या
हमारे संस्कार तलाक जैसी प्रथा को रोक पाने में सक्षम नहीं हैं ?
हमारी
परम्पराएं हर तरह के कुविचारों और कुरीतियों को रोकने में सक्षम हैं|
आज
कल शहरों में एक बड़ा तबका ड्रग्स, परस्त्री और परपुरुष गमन में आशक्त है| सप्तपदी का
निम्न श्लोक देखें कैसे पहले आतंरिक नियंत्रण करता था|
परस्त्रियं
मातृसमां समीक्ष्य स्नेहं सदा चेन्मयि कान्त कुर्या,
वामांगमायामि
तदा त्वदीयं ब्रूते वच: सप्तममत्र कन्या !!
आखिरी
या सातवें वचन के रूप में कन्या ये वर मांगती है कि आप पराई स्त्रियों को मां समान
समझेंगें और पति-पत्नि के आपसी प्रेम के मध्य अन्य किसी को भागीदार न बनाएंगें. यदि
आप यह वचन मुझे दें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ|
भारतीय
परम्पराओं और प्रतीकों के अपने महत्त्व हैं| विवाह मंडप में बहुत से जीवन में उपयोग
आने वाली वस्तुएँ राखी जाती हैं| सभी के अपने महत्त्व होते हैं|
भारतीय
विवाह सिर्फ दो लोगों के मिलने की व्यवस्था नहीं है बल्कि यह एक सामाजिक और धार्मिक
व्यवस्था है जो देवी देवताओ, ऋषियों, बंधू बान्धवों की उपस्थिति में संपन्न होती है|
जिस
प्रकार कन्या सात वचन मांगती है उसी तरह से वर भी कन्या से पांच वचन मांगता है|
हास्यं
परगृहे यानम् त्यजेत् प्रोषित भर्तिका
अर्थात
मै जबतक घर पर रहू तो तुम शृंगार करो देव दर्सन
करो हंसी मजाक करो सामजिक उत्सव मे जाओ परंतु जब मै परदेश मे रहू तो इन बातो से दूर
रहो
विष्णु
वैश्वानरः साक्षी ब्राम्हण ग्याति वान्धवःपंचमं ध्रुव मालोक्य स शाक्षीत्वम ममागतः
अर्थात
विष्णु अग्नि ब्राहण भाइ वन्धु और पाचवे ध्रुव तारा ये साक्षी हैं हमारे इस संवन्ध के अतः हम अपने वचनों के प्रति ईमानदार रहेंगे|
तव
चित्तं मम चित्तेवाचा वाच्यं नलोपयेत् । ब्रते मे सर्वदा देयं हृदयस्थं वरानने
हमारे
चित्त के अनुकूल चित्त रखना हमारे वाक्य का उल्लंघन नही करना और जो कुछ मै कहू उसको
हृदय मे रखना इस प्रकार मेरे पातिव्रत धर्म का पालन करना
मम
तुष्टिश्च कर्तब्या बन्धूनाम भक्ति रादरात्।ममाग्या परिपाल्यैषा पातिव्रतपरायणे
मुझे
जिस प्रकार संतोष हो वही कार्य करना ।मेरे वन्धु वान्धवो के साथ आदर के साथ ब्यवहार
करना हे पतिव्रता धर्म का पालन करने वाली मेरी आग्या का पालन करना। बिना पत्नी के गृहस्थ
धर्म कापालन नही हो सकता अतः तुम मेरी विस्वासपात्र बनो
विनापत्नी
कथं धर्मं आश्रमाणां प्रवर्तते। तस्मात्वं त्वम मम विश्वस्ता भव वामांगगामिनी
मेरी वानांगी बनो यदि तुम मेरे मन के अनुसार चलते हुये पातिव्रत पालन करोगी तो मै तुम्हारी सभी बाते मान लूगा
क्या
शिक्षा का विस्तार और आर्थिक समृद्धि तलाक जैसी कुप्रथा को बढ़ावा देगी और देश का माहौल
ख़राब करेगी ?
बिलकुल
नहीं| मेरे समझ से सही और सकारात्मक शिक्षा बुराइयों को ख़त्म करेगी और विश्व में समृद्धि
और खुशहाली लाएगी| लेकिन आज जरुरत है कि शिक्षा को मूल्यपरक बनाया जाये|
विवाह में होने वाली प्रथाओं का मतलब समझा जाये| प्रायः देखा जाता है कि पंडित जी श्लोक बोलते हैं और लोग मजाक उड़ाते हैं| बताइये कैसे जीवन खुशहाल होगा ? कुंडली मिलान को समझने की जगह हम पंडित जी को ही दोष देने लगते हैं| कुंडली हमारी प्रकृति और जीवन की संभावनाओ का लेखा जोखा होता है| जसमे ८ तरीकों से वर और कन्या के गुण और दोषों का मिलान किया जाता है|
आज कल देखने में आता है कि लोग नाच गाने और जयमाल में व्यस्त रहते हैं और शादी के मुहूर्त का ध्यान नहीं रखते| कृपया ऐसी गलती न करें| मुहूर्त वह समय होता है जब ग्रह अपने एक विशेष स्थिति में होते हैं|
इस
लिए सिर्फ शिक्षित दिखने से काम नहीं चलेगा बल्कि शिक्षित बनाना पड़ेगा और भारतीय मुल्यों
को समझना पड़ेगा| इस तरह से हम जिंदगी के चारों फलों जिनको की धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष
के नाम से जानते हैं का आनंद ले पाएंगे और तलाक जैसी कुरीतियों से बचे रहेंगे|
समस्त
लोकः सुखिनो भवन्तुः
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