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शारदीया नवरात्रिः की द्वितीया तिथि, सर्वशास्त्र के प्रवक्ता वार के स्वामी श्री शुक्र जी को प्रणाम करके आज जीवन के उस रहस्यमयी विज्ञानं की दुनिया में आपको ले चलते हैं जहां न जाने कितने मोती इधर उधर बिखरे पड़े हैं| एक ऐसा विशुद्ध भारतीय ज्ञान जो मानव की समस्त समस्याओ को सुलझाने में सक्षम होते हुए भी, आज भारत में उपेक्षित है| मैं खुद जीवन के एक बड़े अवधि तक इस विधा पर विश्वास नहीं करता था लेकिन कहावत है कि समय सबसे बड़ा शिक्षक होता है| विराट संसार रूपी समुद्र की अथाह लहरों पर, छोटी सी कश्ती लेकर हम भी कभी अपने आपको समुद्र का सम्राट समझ लेते है| लेकिन जब चक्रवाती तूफान की तेज हवाएं, चारों तरफ घनघोर अट्ठहास करते बादलों से समुद्र की लहरों पर अंधेरों में सामना होता है तब गुरु श्री जी. नारायणन के एक दिव्य प्रकाश से धरती का मार्ग मिलता है| गुरु श्री कृष्णा विश्वनाथ अय्यर के मार्गदर्शन में धीरे धीरे हम उस गुरुकुल में आ ही गए जहां श्री पी वी आर नरसिंहराव, श्री संजय रथ, श्री बी वी रमन जैसे न जाने कितने महर्षियों का आशीर्वाद मिला|उन्ही की प्रेरणा से आज आप सबके सम्मुख उपस्थित होने की चेष्टा कर रहा हूँ| इस लेख में अगर आपको कुछ उपयोगी तत्व मिल जाये तो यह इन्ही मनीषियों का योगदान समझें| किसी भी त्रुटि के लिए मैं खुद जिम्मेदार हूँ|
गुरुर्ब्रह्मा
गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरा |
गुरुर्साक्षात
परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः
|
भारतीय
ज्योर्तिष की महान परंपरा
को किसी कालखंड में
बांधना संभव नहीं है|
भारतीय सभ्यता के आदि ग्रन्थ
"वेद" को
अपौरुषेय कहा जाता है
यानि ये साक्षात परमात्मा
के सन्देश हैं जिन्हे किसी
व्यक्ति विशेष ने नहीं संकलित
किया | इनको श्रुति भी
कहा जाता है क्यूकी
पहले इनका पाठ स्मृतियों
में गुरु शिष्य परंपरा
के द्वारा एक पीढ़ी से
दूसरी पीढ़ी में जाता
था| ज्योर्तिष को वेदों का
अंग यानि "वेदांग" कहा जाता है|
एक तरह से कहें
तो “ज्योर्तिष” वेद की आंखे
हैं| ज्योर्ति का अर्थ प्रकाश
होता है| वृहद् आरण्यक
उपनिषद् के ज्योतिर्ब्रह्माण प्रसंग
में आँखों को भी प्रकाश का
श्रोत बताया गया है|ज्योर्तिष
वह विज्ञान है जिसमे ब्रह्माण्ड
में स्थित ग्रहो के मानव जीवन
पर पड़ने वाले प्रभावों
का सुव्यवस्थित अध्ययन किया जाता है|
वैदिक
काल में ज्योर्तिष अपने
शिखर पर था जिसमे
गुरुकुलों में शिक्षक और
छात्र इसपर शोध करते
थे और मानव जीवन
की भलाई के लिए
प्रयाश करते थे| जन
सामान्य भी खगोलीय घटनाओ
का पूर्वानुमान लगा लेता था|हम आज महर्षि
पराशर, जैमिनी, वराहमिहिर, रामानुज इत्यादि जैसी आत्माओ के
ऋणी हैं जिन्होंने अपने
दिव्य ज्ञान से विश्व को
अवलोकित किया| यहाँ यह निश्चित
कर देना आवश्यक है
की ज्योर्तिष एक मार्गदर्शन प्राप्त
करने की विद्या है|
हालाँकि योरोपियन और पश्चिम एशियाई
समुद्री लुटेरों के आक्रमण से
बहुत ही अधिक साहित्य
की क्षति हुई लेकिन फिर
भी सनातन सारथी मनीषियों की वजह से
आज भी प्रचुर मात्रा
में ज्योर्तिष की पुस्तके उपलब्ध
है| हमारे प्राचीन ज्योतिषाचार्य की कंप्यूटर शिक्षित
संतति ने विद्या को
नयी दिशा दी| जिसकी
वजह से आज बहुत
सी कठिन गणनाएं आसानी
से प्राप्त हो जाती हैं|
ज्योर्तिष की विषय
वस्तु
हम
ज्योर्तिष की विषय वस्तु
को बहुत
ही आसान रूप में
आपके सम्मुख प्रस्तुत करेंगे जिससे आप बिना किसी
परेशानी के इसको समझ
सकें| ज्योर्तिष
की मुख्य विषय वस्तु ग्रह,
राशि, भाव, नक्षत्र, योग, करन, वर्ग चक्र और दशाएं हैं| अगर आप
इसका क्रमशः अध्ययन करेंगे तो आप इसे
बहुत ही आनंद दायक
पाएंगे| आइये पहले इनके
बारे में संछिप्त जानकारी
प्राप्त करते हैं|
ग्रह- ब्रह्माण्ड में स्थित विशालकाय खगोलीय पिंडो को ग्रह कहते हैं| मानव जीवन पर ग्रहों का बहुत ही प्रभाव रहता है| भारतीय ज्योर्तिष में ९ ग्रहों के बारे में अध्ययन किया जाता है| ये हैँ सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु | राहु और केतु को छाया ग्रह माना जाता है| हालाँकि आधुनिक भूगोल शास्त्र में सूर्य को तारा और चन्द्रमा को उपग्रह की श्रेणी में रखते हैं लेकिन ज्योर्तिबिज्ञान में इनको ग्रहों की श्रेणी में ही रखा जाता है| सूर्य ब्रह्माण्ड के केंद्र में रहता है| सभी ग्रह अपनी अपनी कक्षा में सदैव गतिमान रहते हैं| किसी व्यक्ति के जन्म के समय की ग्रह स्थिति के अनुसार ग्रह अपना प्रभाव डालते हैं|
राशियाँ
जैसा
की हम जानते हैं
की समस्त भूमण्डल ३६० अंश का
होता है| इस ३६०
अंश के भूमण्डल को
१२ राशियों में बांटा गया
है| हर राशि का
मान ३६०/१२=३०
अंश का होता है|
हर अंश में ६०
कला और हर कला
में ६० विकला होते
हैं| हर राशि के
अपने स्वामी होते
हैं| सूर्य और चन्द्रमा
का एक राशि पर और
बाकी ग्रहों का दो दो
राशियों पर अधिपत्य होता
है| राशियां और उनके अक्षांस
का मान निम्नवत होता
है|
राशियां |
अक्षांस
(अंश) |
राशि
स्वामी (ग्रह) |
मेष |
0-30 |
मंगल |
वृष |
>30-60 |
शुक्र |
मिथुन |
>60-90 |
बुध |
कर्क |
>90-120 |
चन्द्रमा |
सिंह
|
>120-150 |
सूर्य |
कन्या |
>150-180 |
बुध |
तुला |
>180-210 |
शुक्र |
वृश्चिक |
>210-240 |
मंगल |
धनु
|
>240-270 |
गुरु |
मकर
|
>270-300 |
शनि |
कुम्भ
|
>300-330 |
शनि |
मीन |
>330-360 |
गुरु |
भाव
जिस
तरह से कुंडली में बारह राशियां होती हैं उसी तरह
से कुंडली में बारह भाव होते हैं| हम यहाँ पर उत्तर भारतीय पद्धति की बात कर रहे हैं| इसमें भाव स्थिर होते हैं जबकि राशियां बदलती रहती हैं|
ऊपर
की तरफ एकदम मध्य में जहां पर दो संख्या लिखी है वह पहला भाव होता है| भाव के बीच में लिखी संख्या उसमे स्थित राशि को दर्शाता है| भाव ऊपर से दाये से बाएं की ओर घडी की बिपरीत दिशा में चलते हैं| अलग अलग भावों से मनुष्य जीवन के अलग अलग विषयों की गड़ना की जाती है|
नक्षत्र
सम्पूर्ण भूमण्डल को जिस तरह से १२ राशियों में बिभाजित करके उन्हें अलग अलग नाम दिए गए उसी तरह से भूमण्डल को २७ भागों में बिभक्त करने से २७ नक्षत्र बन जाते हैं| इनका नाम करण उस भाग में उपस्थित तारों की आकृति के अनुसार किया गया है| कुंडली का और सूक्ष्म अध्ययन करने के लिए नक्षत्रो का अध्ययन आवश्यक है| इस तरह से एक नक्षत्र का मान ३६०/२७=13. २० होता है| राशियों की तरह हर नक्षत्र का अपना स्वामी होता है| इनका विस्तृत अध्ययन हम आने वाले अध्यायों में करेंगे|
योग
जिस तरह से भूमण्डल में २७ नक्षत्र होते हैं उसी तरह से २७ योग भी होते हैं| हर योग का मान 13. २० अंश ही होता है| ये योग मनुष्य का स्वाभाव निर्धारित करते हैं| इनका भी विस्तृत अध्ययन हम आगे के पाठों में करेंगे|
करन
वर्ग चक्र
जीवन के अलग अलग पहलुओ का विस्तृत अध्ययन के लिए महर्षियों ने १६ अलग अलग तरह के वर्ग चक्रों का वर्णन किया है| डी-१ जिसे जन्म कुंडली कहते हैं वह पहला चक्र है| इसमें जीवन का सारांश समाया रहता है| इसे लग्न चक्र भी कहते हैं| इसी तरह के अलग अलग चक्रों के नाम इस तरह से है| होरा चक्र धन सम्बन्धी विषय और द्रेक्कना वर्ग भाई बहन का विचार करने के लिए उपयोग करते हैं| चतुर्थांसा से भाग्य, सप्तांशा से बच्चों, नवांसा से साथी, दशांश से कर्मक्षेत्र, द्वादसांशा से माता पिता, षोडशांशा से गाड़ी, विम्संक्षा से धार्मिक प्रवृति, चतुर्थांश से अध्ययन अध्यापन, सातविसंशा से शक्ति इत्यादि का गहन अध्ययन किया जाता है|
दशाएं
उत्तर
भारत में विंशोत्तरी दशा सर्वाधिक मान्य है जिसमे मनुष्य की आयु १२० वर्ष मानी जाती है| एक नियम के तहत १२० वर्ष को अलग अलग ग्रहो की महादशा में बिभाजित किया गया है| उन ग्रहों की महादशा के अंदर अन्तर्दशाये, प्रत्यान्तर और सूक्ष्म दसाये भी चलती रहती हैं| इन दशाओ में ग्रह अपनी स्थिति और बल के अनुसार अच्छे या बुरे फल देते हैं| इनका अध्ययन भी हम आगे आने वाले पाठों में करेंगे|
ज्योर्तिष एक बहुत ही आसान और आनंद का विषय है| हम इसके हर सूक्ष्म सिद्धांतो का अध्ययन करेंगे| हम सलाह देते हैं की इसका अध्ययन आराम और आनंद के साथ करें| अगर कहीं पर कोई कठिनाई हो तो इस मेल पर या कमेंट में अपने सवाल पूंछ सकते हैं|
जय
माँ दुर्गे
समस्त
लोकाः सुखिनो भवन्तुः
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