भारत देश एक महान देश है जिसकी सभ्यता और संस्कृत कई हजारों साल पुरानी है | लोगों का मानना है की भारत भूमि मानवता की आधारशिला है जहाँ पर खुद भगवान ने एक नहीं कई कई बार जन्म लिया लोगों के कष्ट दूर किये और उन्हें जीवन के महत्त्व को समझाया | यह सत्य, प्रेम, धर्म, शांति, अहिंसा और पराक्रम का उद्गम स्थल है | जब बाकी दुनिया में अक्षर का ज्ञान नहीं था तो यहाँ पर वेद , उपनिषद्, पुराण, संहिता , रामायण और महाभारत, गीता, और अष्टाध्यायी
की रचना हुई | यह व्यास , पाणिनि , पंतञ्जलि, याज्ञवल्की
, सूर , तुलसी, कबीर, रविदास, मीरा, गुरु नानक, गौतम और महाबीर जैसे न जाने कितने ऋषियों मुनियों की धरती है | त्याग और परोपकार जहाँ लोगों को संस्कार का अभिन्न अंग है | जहाँ राजऋषि जनक को विदेह कहा जाता है | जहाँ ऋषि शिवि किसी कबूतर की जान बचाने के लिए बाज को अपने शरीर का मांस खाने की इजाजत दे देते हैं | तमाम सारी अलग अलग क्षेत्रीय परम्पराओ के बावजूद अनेकता में एकता की भावना को समेटे हुए इस देश में एक अलग तरह की पवित्रता है |
इतनी सारी खूबियों के बावजूद यह देश ६०० से ८०० सालो तक विदेशी अक्रान्ताओ
का गुलाम रहा | लुटेरों ने जी भरके न सिर्फ लूटा बल्कि विरासत में अनेक बुराइयाँ छोड़ के चले गए | त्याग और परोपकार की जगह व्यक्तिगत स्वार्थ लिप्सा ने ले ली जिसको सामान्यतः लोग भ्रस्टाचार कहते हैं | आज़ादी के बाद एक विशेष तबका जो कि तब सत्ता के समीप था धनवान होता चला गया | लाल फीता शाही का दौर जो की अंग्रेजो के समय में था वह निर्बाध रूप से चलता रहा | सिर्फ शाशक बदल गए, शोषण में कोई कमी नहीं आयी | भ्रष्टाचार को रोकने के तमाम संस्थाए बनायीं गई लेकिन सब सिर्फ ढाक के तीन पात साबित हुई | लोकपाल कानूनों की मांग हुयी उन आंदोलन की सीढ़ी चढ़कर कुछ लोग सत्ता की मलाई के हक़दार बन गए लेकिन क्या मजाल की भ्रष्टाचार में कोई आंच आयी हो |
मोदी सरकार आने के बाद यह उम्मीद जगी कि शायद अब भ्रष्टाचार पर कुछ अंकुश लगेगा | सरकार ने बहुत सारी सरकारी सेवाएं ऑनलाइन कर दीं, कुछ भ्रस्ट अफसरों को सेवानिवृत्त भी कर दिया संभवतः कुछ अंकुश लगा भी हो | लेकिन जमीनी स्तर पर शायद ही कोई खास असर आया हो | एक तरह से देखें तो सरकारी व्यवस्थाएं मुख्यतः ठेकेदारों के भरोसे चलती हैं | सरकारी अफसरों और ठेकेदारों के गठजोड़ का रिश्ता तमाम ऑनलाइन सिस्टम को भी मात देता रहता है | साथ में अव्यवहारिक सरकारी कानूनों ने लोगों का दम घोट रखा है |
पहले सरकारें गिने चुने काम करती थी | खैर ज्यादा वाहवाही भी नहीं करती थी | आजकल सरकारें बड़ी प्रगतिशील
हैं | परफॉरमेंस अप्रैज़ल का जमाना है तो तमाम हवा हवाई योजनाये बनायीं जाती हैं | उसका एक बड़ा हिस्सा उस योजना की वेबसाइट, मोबाइल ऐप्प और उसकी मार्केटिंग में चला जाता है | जमीनी स्तर पर जाकर देखा जाये तो सब ढाक के तीन पात ही समझ में आता है | इसमें केंद्र और राज्य दोनों की करीब करीब एक ही हालत है | ऑडिट और विजिलेंस की सेवाएं भी लगभग हाथीदांत जैसी रह गयी हैं | सत्ताधारी दल सोशल मीडिया पर अपनी पीठ थपथपा रहे होते हैं | विरोधी दाल भी मजबूर है इस मुद्दे पर कोई किसी को कुछ नहीं कहता क्यूँकि कहावत है की जिसके घर शीशे के होते हैं वह दूसरे के घर पर पत्थर क्यों फेके?
अभी केंद्र सरकार ने बहुत बड़ी घोषणा की कि इस बार का बजट इलेक्ट्रॉनिक
रहेगा | बहुत ख़ुशी की बात है क्यूकि वैसे भी पेपर वाला बजट कौन सा हमारे ९०% सांसदों को समझ में आता था ? न्यूज़ पेपर वाले बोलते थे यह सामान सस्ता होगा वह मॅहगा होगा लेकिन लेकिन ध्यान दीजिए तो पाइयेगा की सस्ते वाला कितनी बात सस्ता हुआ ?
जीएसटी का कानून आया तो हमें भी एक कांफ्रेंस में जाने का मौका मिला था | बड़ी तारीफों के पुल सुनने को मिले थे | निःसंदेह बड़े मनुफक्चरर्स और बड़े व्यापारियों को फायदा हुआ लेकिन कितने छोटे व्यापारी अभी भी इस सिस्टम में सहज नहीं महसूस कर पा रहे हैं | अभी कुछ दिन पहले हमारे एक मित्र का फ़ोन आया की उनका जीएसटी नंबर रिटर्न न फाइल करने की वजह से कैंसिल हो गया है | मैंने उनको सलाह दी की वह अपना रिटर्न फाइल करें टैक्स अगर बनता है तो उसे जमा करें और कैंसलेशन वापस लेने के लिए एप्लीकेशन दें | उन्होंने पूरी ईमानदारी से टैक्स, लेट पेमेंट का व्याज और पेनल्टी सब जमा की फिर कैंसलेशन वापस लेने का एप्लीकेशन दिया | लेकिन सम्बंधित अधिकारियों ने कोई जबाब नहीं दिया | उन्होंने अपने स्तर पर कंमिशनर अपील के पास गए तो उन लोगो ने कहा की उन्हें टैक्स ही नहीं जमा करना था बल्कि नया नंबर ले लेना चाहिए था | उसने बताया की अब अपील का समय ख़त्म हो गया है आप हाई कोर्ट जाये | मतलब हमारा सरकारी महकमा ही व्यापारियों को टैक्स चोरी सीखा रहा था | खैर हमारे मित्र ने उसकी बात नहीं मानी और दुबारा से अपने सर्किल के अस्सिटेंट कमिश्नर के पास गए | उसने बताया कि अब उसके पास कैंसलेशन वापस लेने का कोई विकल्प नहीं है | कोरोना महामारी के दौर में जहां व्यापारी वर्ग कम बिक्री, बैंक के व्याज और फिक्स खर्चे को किसी तरह से बर्दास्त कर रहा है उसपर लाखों रुपये की घूस की देने की मजबूरी मैंने पहली बार देखी | खैर जैसे तैसे करके थोड़े मोलभाव में उसका काम हुआ लेकिन मेरा इस हवा हवाई सरकारी ट्रांसपेरेंसी के दावों से विश्वास उठ गया | ऐसा लगने लगा जैसे हमारे कानूनों और सिस्टम में लोगों की वास्तविक परेशानियों से कोई वास्ता इलाज नहीं है | एक ईमानदार व्यापारी जोकि व्याज और पेनाल्टी सब देने को तैयार था उसे भी घूस देने के लिए विवश होना पड़ा | यह ऐसा इकलौता केस नहीं होगा रोज ऐसे वाकये होते होंगे | निःसंदेह सरकार को इससे कोई फायदा नहीं है लेकिन सरकारी बाबू मालामाल होकर देश की एन्टेर्प्रिसिंग स्किल को बर्बाद कर रहे हैं |
सरकार से एक प्रार्थना है की अपनी नाकारा ऑडिट और विजिलेंस सेल को थोड़ा एक्टिव करें | जो चीजें एक नार्मल ऑडिटर देख लेता है वह चीजें ये सरकारी बाबू क्यों नहीं देख पाते ? इनको वास्तविक ट्रेनिंग दें खानापूर्ति की कागजी ट्रेनिंग नहीं |
बीजेपी अध्यक्ष जी को सलाह है कि अपनी पार्टी में एक ऐसा सेल बनाएं जो इन दूरगामी मुद्दों पर सरकार को न सिर्फ सलाह दे बल्कि उनका रिव्यु भी करे | प्रधानमंत्री मोदी एक कुशल प्रशासक हैं लेकिन आप लोग उनके आंख कान बने | चापलूसों से घिरे रहने पर आप लोग भी दूसरी पार्टियों जैसे हो जायेगे |
0 Comments
Please do not enter any spam links in the box