सेवा से साधना तक

सेवा से साधना तक


भगवान कहते हैं कि अगर तुम किसी की सेवा करते हो या किसी को सांत्वना देते हो या किसी को उत्साहित करते हो तो तुम मेरी सेवा कर रहे होते हो क्यूकी मैं सभी जीवों में मे हूँ।

सेवा क्या हैं ?

यह प्रश्न कई जगह होता हैं कि सेवा क्या है। बहुत से राजनैतिक दल भी सेवा कि प्रतियोगिता करते दिखाई देते है।कुछ संगठन सीएसआर नियमोँ की मजबूरी में सेवा करते दिखते हैं,  क्या यही सब सेवा हैं ? शायद नहीं। 

जब हम किसी जीवित प्राणी को निःस्वार्थ  प्रेम और करुणा के भाव से उसके कष्ट को कम करने कि भावना से सहयोग करते हैं तो सही मायने में हम भगवान कि सेवा कर रहे होते हैं। यही सेवा सच्ची सेवा कहलाती है। अगर सेवा में स्वार्थ होता है तो वह सच्ची सेवा नहीं हो सकती।

एक बार हिमालय क्षेत्र में २ तपस्वी जा रहे थे। एक गुर थे दूसरा शिष्य। रास्ते में एक पहाड़ी नदी पड़ी।  वे दोनों उसको पार करके जैसे ही दूसरे किनारे पर पहुंचे तो देखा की एक सुन्दर युवती किनारे खड़ी थी। वह नदी में घुसने में डर रही थी और तपश्वियों से सहायता की प्रार्थना की। गुरूजी ने उसको गोंद में उठाकर नदी के दूसरे किनारे पर रख दिया।  फिर दोनों अपने गंतब्य की तरफ आगे बढ़ गए। शिष्य पुरे रास्ते एकदम मौन रहा।  आश्रम में पहुंच कर भी वह बड़ा उदास सा दिख रहा था तो गुरूजी ने उसकी उदासी का कारण पूछा। शिष्य ने पूछा की हम ब्रह्मचारी हैँ हमें स्त्रियों को छूना निषेध हैं आपने इस नियम के बिपरीत उसे गोंद में उठाया।  गुरु जी ने कहा की भाई मैं तो उसे नदी के किनारे छोड़ के आ गया और तुम उसको अभी भी अपने साथ लाये हो। दूसरी बात जब तुम निःस्वार्थ भाव से किसी की सेवा करते हो तो उसमे कोई पाप नहीं लगता। 

क्या सेवा कार्य इतना आसान है ?

शायद नहीं।  क्यूकी सेवा कार्य में दया और करुणा का भाव लाने के लिए हमें अपने अहम् और अधिकार की भावना को बश में करना होता है। अगर अहम् और अधिकार का समावेश हो गया तो समझ लें कि सेवा कार्य दूषित हो गया। इसके लिए हमें अपने मन को पूरी तरह निर्मल बनाना पड़ता है। इसी लिए सेवा को साधना भी कहा जाता है।  क्यूकी इसके लिए हमें अपने मन को जीतना पड़ता हैं जो की बहुत ही कठिन काम हैं।  

क्या सेवा आराधना है ?

सेवा एक आध्यात्मिक कार्य है।  सेवा साधना का महत्त्व पूर्ण अंग है।  भगवान कहते हैं कि सेवा इस भावना से की जानी चाहिए जैसे साक्षात भगवान सामने उपस्थित हैं। जब हम भगवान की सेवा करते हैं तो बदले में हमें उनका प्रेम प्राप्त होता है।  इस तरह से सेवा की भावना एक दैवीय गुण है। सेवा अपने सभी रूपों में एक आध्यात्मिक कार्य है जो की सेवा करने वाले व्यक्ति के मन और मस्तिष्क में शुद्धता ला देती है।  

सेवा क्यों करनी चाहिए ?

भगवान कहते हैं की सभी मनुष्य हमारे ही रूप हैं।  इस तरह से हम समझ सकते हैं कि मनुष्य के जीवन का असली उद्देश्य ही दूसरों सेवा करना है।  मानव सेवा ही माधव सेवा है। सही अर्थो में सेवा भगवान की असली आराधना है।  यह भगवान का अनुग्रह पाने का एक माध्यम है। 

सेवा कहाँ से शुरू करें।

सेवा की शुरुआत घर से ही करें उसके बाद वृहद् स्तर पर बाहर की तैयारी करें। भगवान कहते हैं कि तुम बहुत भाग्यशाली हो जो सेवा कि भावना तुम्हारे अंदर हैं।  तुम्हारे पास जो भी धन, समय, या ज्ञान है उसको वंचितों में बांटो।  दैवीय कृपा प्राप्त करने का यह एक निश्चित तरीका है।

अगर आप बाहर बहुत कुछ करते हैं और अपने परिवार के लोगो की तकलीफो पर ध्यान नहीं देते तो हमें दुबारा सोचने के जरुरत हैं। इसकी शुरुआत हमें माँ बाप की सेवा से ही करना चाहिए।

सेवा से क्या लाभ होता है ?

सेवा एक उच्च कोटि कि साधना है। अपने अहम् को नियंत्रित करने और भगवत प्राप्ति का एक उत्तम माध्यम है। सेवा चार तरह कि होती है

१- भौतिक सेवा

२- मानसिक सेवा

३- बौद्धिक सेवा

४- आध्यात्मिक सेवा

आइये इनके बारे में थोड़ा विस्तार से बात करते है।


 भौतिक सेवा

जरुरतमंदो को जीवनोपयोगी वस्तुओ को प्रदान करना इस श्रेणी में आता है जैसे किसी को द्रव्य, भोजन, पानी, शरण, चिकित्सा या अध्ययन सुविधा प्रदान करना।


मानसिक सेवा

जब हम किसी कि सेवा भौतिक रूप में नहीं कर पा रहे हो तो कम से कम उसको सांत्वना दें  या उसकी भलाई के लिए सच्चे मन से भगवान से प्रार्थना कर सकते हैं। यह मानसिक सेवा की श्रेणी में आता हैं।


बौद्धिक सेवा

जब किसी जरूरतमंद की ज्ञान वृद्धि के लिए प्रयास करते हैं तो यह बौद्धिक सेवा में आता हैं जैसे की आर्थिक रूप से कमजोर विद्यार्थियों को पुस्तकें प्रदान करना, लोगो को उनके काम को बेहतर करने का तरीका बताना या ज्ञान की वृद्धि करने वाली पुस्तकें लिखना इत्यादि बौद्धिक सेवा में आता हैं।


आध्यात्मिक सेवा

जनोपयोगी आध्यात्मिक कार्य इस श्रेणी में आते हैं जैसे की वेद पाठ, भजन, नगर संकीर्तन, ॐ का उच्चारण इत्यादि।  दुसरो को आनंदित करने के प्रयाश में खुद आनंदित होने का अनुभव ही अलग होता हैं। सेवा लोगो के अंदर छिपी हुए दैवीय गुण बाहर लाती हैं जिससे बिगत में किये हुए पाप काट जाते हैँ, मनुष्य विशाल ह्रदय का हो जाता हैं, संकुचित सोच और गलत विचार ख़त्म हो जाते हैँ।

सेवक कि योग्यताएं क्या हैँ ?

क्या हर कोई सेवा का अधिकारी हैं ? शायद नहीं।  इसके लिए कुछ योग्यताएं बताई गयी हैं।  जिस मनुष्य के शुद्ध विशाल ह्रदय में प्रेम और करुणा का वाश हो चेहरे पर विनम्रता हो और मन में सेवा का भाव हो वही व्यक्ति सेवा का अधिकारी होता हैं। कोई भी जिज्ञासु व्यक्ति जिसको खुद पर या ईश्वर पर विश्वास हो वह इन भावों को अपने अंदर विकसित कर सकता हैं।

सेवा का समाज में महत्व

समाज क्या हैं ?

कुछ व्यक्तियों का समूह, एकता में रहकर समाज का निर्माण करता हैं। बिना किसी उद्देश्य के अचानक इकठ्ठा हुए मनुष्यों के समूह को हम समाज नहीं कह सकते।  लोगो के ज्ञान और कौशल का एक दूसरे में आदान प्रदान लगातार होते रहना चाहिए इसमें अहम् का टकराव नहीं होना चाहिए। 

सेवा का समाज में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान हैं। इसमें दो चीजों का होना अति आवश्यक हैं १) दया और २) त्याग की भावना।

समाज की सेवा क्यों करें ?

हमारा जीवन समाज से ही शुरू होता हैं और समाज में ही ख़त्म हो जाता हैं।  हमारी सारी उपलब्धियां समाज के द्वारा और समाज में ही मिलती हैं। अगर समाज न स्वीकार करें तो हम जिन्दा नहीं रह सकते। इसी लिए कहा जाता हैं कि मनुष्य का अस्तित्व समाज से ही हैं और वह समाज का ऋणी हैं। इसलिए हम समाज से जो भी पाते हैं उसके लिए हमें समाज का आभारी होना चाहिए।

हम सारे सुख और सुविधा की वस्तुए समाज से हो प्राप्त करते हैँ। इसलिए हमें अपने अनुभव और कौशल पर स्वार्थी नहीं होना चाहिए। बल्कि इसको समाज की भलाई के लिए उपयोग करना चाहिए या यु कहें की अधिकतम लोगो की सहायता करके हमें समाज का ऋण उतरना चाहिए। सेवा की भावना से हम समाज में नैसर्गिक सुख का आनंद उठा सकते है।

सेवा न सिर्फ हमें विशाल ह्रदय बनाती हैं बल्कि आनंद से सराबोर कर देती हैं और समाज को भी पूरी तरह से बदल देती हैं।  सेवा प्रेम का एक रूप हैं।  हम सभी को इस सत्य का अनुभव करना चाहिए।  भगवान हमेशा कहते हैं की मनुष्य की सेवा उसके अंदर उपस्थित मेरी ही सेवा हैं।

सेवा, संगठन के साथ काम करने के कई लाभ हैं।  जो काम हम अकेले नहीं कर सकते वह संगठन के माध्यम से बहुत आसानी से कर सकते हैँ।  इस सत्य को चिड़िया, जानवर और कीड़े मकौड़े तक समझते हैँ।  सामूहिक कार्य के द्वारा वे लाभ उठाते हैँ।  इसलिए विश्वास करिये की एक संगठित समाज चाह ले तो कुछ भी असंभव नहीं हैं।  सेवा से मोक्ष की प्राप्ति हो सकती हैं यह एक दैवीय मंत्र हैं इसको मन में बैठा लेने की जरुरत हैं। इसके लिए हमको एकता, त्याग और दया की भावना अपने अंदर जाग्रति करनी होगी।

जब हमने शिप्रा सनसिटी में फ्री विब्रिओनिक मेडिकल कैंप की शुरुआत करनी चाही तो मन में बहुत से संसय आए जैसे की सोसाइटी के कानून कायदे, लोगो को समझाना इत्यादि।  कैसे छोटे बच्चो के साथ हो पायेगा फिर हमने इस पर अपनी भास्कर शाखा में चर्चा की उसकी बाद भास्कर शाखा का यह कैंप हर स्वयंसेवक का कैंप बन गया। संगठन शक्ति का यह अनुभव अपने आप में अनूठा हैं।

बिना किसी स्वार्थ के की गयी सेवा सेवा लेने वाले को साहस प्रदान करती हैं। हमारी सेवा भगवान को एक भेंट हैं।  इसलिए सेवा का हर छोटा से छोटा अवसर भगवान का प्रसाद समझ कर ग्रहण करना चाहिए। यह भावना हमें आत्मबोध कराती हैं।

इस संसार को बदलने से पहले खुद को बदलना पड़ता हैं। जब हम अच्छे होंगे तो हमारा परिवार भी अच्छा होगा।  जब परिवार अच्छे होंगे तो समाज अपने आप बदल जायेगा।  समाज में बदलाव देश में बदलाव लता हैं जो अंततोगत्वा संसार में बदलाव का साक्षी बनता हैं।

एक ४० साल के चार्टर्ड अकाउंटेंट के लिए मेडिकल का कोर्स करना सोचने में ही बड़ा अटपटा  लगता हैं लेकिन सेवा की भावना, शुभ चिंतको की प्रेरणा, परिवार का सहयोग, अध्यापको का प्रेम और सेवा भावना और संगठन का सहयोग एक सामान्य व्यक्ति को भी असामान्य कार्य करने में सक्षम बना देता हैं।

जिस तरह से आंख कान और अन्य अंग हमारे शरीर के अंग हैं उसी तरह से हम भी समाज के अंग हैँ।  समाज मानवता का एक अंग हैं और मानवता प्रकृति का एक अंग हैं और इसी तरह से प्रकृति ईश्वर का एक अंग हैं। हमें अपने और ईश्वर के बीच इस सम्बन्ध को कभी नहीं भूलना चाहिए।  इसलिए आइये दूसरों के जीवन स्तर उठाकर एक अच्छे समाज का निर्माण करते हैँ। 

हमारे जीवन का उद्देश्य जानवरो से हटके होना चाहिए।  एक तरीके से देखे तो सेवा ही जीवन का उद्देश्य हैं।  हमने समाज से जो पाया हैं उससे भी बढ़कर वापस करना हैं। इसलिए स्वार्थ रहित सेवा करने की जरुरत हैं जिसमे प्रेम और त्याग की भावना हो।  यह सेवा को आध्यात्मिकता में बदलने की एक युक्ति हैं। 

कोरोना महामारी अपनी समाप्ति की ओर है आइये एक बार फिर से अपने सेवा कार्य को नयी गति देने का प्रयाश करे और भारत भूमि को विश्व गुरु बनायें। 

 

धन्यवाद्

लोका: समस्ता: सुखिनो भवन्तु. शान्तिः शान्तिः शान्तिः. हरि !


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