लेकिन धीरे धीरे मानव चेतना ने करवट बदली और लोग अपनी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किये और एक बार ऐसा लगा जैसे उपनिवेशवाद का अंत हो गया और अब हर कोई जियो और जीने दो के रास्ते पर चलेगा। लेकिन विश्व की आज की हालत को देखते हुए लगता है की फिर से उपनिवेशवाद का दौर शुरू हो गया है।
उसी व्यापार नीति का सहारा लेकर आज फिर विश्व को ब्लैकमेल करने की साजिसे चल रही हैं। यू तो यह काम १९५० के आसपास ही शुरू हो गया था जब चीन ने हिंदी चीनी भाई भाई का नारा देने के साथ तिब्बत और भारत के कुछ हिस्सों पर न सिर्फ कब्ज़ा किया बल्कि एक नए स्वतंत्र हुए देश को युद्ध की विभीषिका में धकेल दिया।
सिर्फ भारत ही नहीं चीन ने बल्कि कमो बेस सारे पड़ोसियों की जमीं को हथियाना शुरू कर दिया जैसे की बर्मा, भूटान, पाकिस्तान, नेपाल, अफगानिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, मंगोलिया, वियतनाम और ताइवान। इन सारे देशों के साथ किसी न किसी मामले को लेकर चीन हमेशा विवाद बनाये रखता है। इन सबके अलावा चीन जापान के भी कई द्वीपों पर अपना दावा पेश करता है और आये दिन उकसावे की कार्यवाही करता रहता है।
चीन एक कम्युनिष्ट देश है जिसमे लोकतंत्र नहीं है बल्कि सत्ता कुछ गिने चुने लोगो के हाथ में होती है। हालाँकि पिछले कुछ सालों में चीन ने काफी आर्थिक तरक्की की है लेकिन अगर हम पिछले तीस चालीस सालों का इतिहास देखे तो शायद ही चीन ने किसी सृजनात्मकता का परिचय दिया हो। दूसरे देशो से तकनीक की चोरी के बहुत से केस हम लोगो ने समाचार पत्रों में पढ़े हैं।
भारत एक लोकतान्त्रिक देश होने की वजह से हमेशा चीन की नजरो में खटकता रहता है इसलिए वह भारत में अपनी सामदाम दंड भेद की नीयत के तहत हमेशा कोई न कोई उपद्रव करवाने में लगा रहता है। जैसे की पाकिस्तानी आतंकवाद को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष समर्थन देकर या नेपाल के प्रधान मंत्री को व्यक्तिगत लाभ देकर। श्रीलंका पाकिस्तान और नेपाल जैसे भारत के पड़ोसियों को अपने कर्ज के जाल में फंसा कर उनके बंदरगाहों या हवाई अड्डों का नियंत्रण लेकर वह भारत के चारो ओर एक जाल सा बनाने में लगा है। उसने कई देशों को "अपने वन बेल्ट वन रोड" योजना का हिस्सा बनाकर कर्ज के जाल में उलझा रखा है। मीडिया न्यूज़ के हवाले से पता लगा की कई सारे भारतीय राजनैतिक दलों और मीडिया घरानो को चंदा देकर वह अपने स्वार्थ हेतु प्रयोग में लाता है। कुछ पार्टियों के साथ तो उसने एक दूसरे को फायदा पहुंचने का पूरा समझौता ही कर लिया और बदले में व्यापारिक लाभ हासिल किये। एक तरह से देखें तो यह देश की सुरक्षा से बहुत बड़ा खिलवाड़ था।
सीमा शुल्क और सब्सिड़ी का लाभ पाने के कारन चीन की वस्तुए सस्ती होने लगी और भारतीय उत्पादक धीरे धीरे रिटेलर बनकर रह गए जिसका सीधा लाभ चीन को हुआ और भारतीय उद्योग धंधे चौपट होने लगे।
हद तो तब हो गयी जब चीन में पैदा हुआ कोरोना वायरस पुरे विश्व में फ़ैल गया और चीन ने इसकी सूचना बाकी देशो के साथ साझा नहीं की। कुछ लोगो ने तो यह भी आरोप लगाया को कोरोना वायरस चीन ने अपने लैब में तैयार किया लेकिन अभी तक इसकी पुष्टि नहीं हो पायी और शायद हो भी न पाए। लेकिन जिस तरह से चीन बिना किसी ठोस कारण के भारत से सीमा विवाद बढ़ा रहा है जिसमे भारत के २१ सैनिको की जान चली गयी है उससे यही लगता है की हो न हो कोरोना वायरस भी चीन की ही साजिस हो। इस तरह से चीन के ऊपर जरूरी सामानो के लिए निर्भरता देश के लिए बहुत घातक है।
एक कहावत है कि जो जैसा करता है वैसे ही भरता है। इस तरह से चीन कि यह चालाकी किसी दिन उसी के ऊपर भरी पड़ेगी। इस लिए आज सभी देशो को चाहिए कि इस मानवता के दुश्मन का बायकॉट करें। मतलब चीन में बनी हुई चीजे न खरीदें। उन राजनैतिक दलों को जिन्होंने चंदे लेकर अभी तक चीन के लिए काम किया, समझने कि जरुरत है कि अगर वे देश का साथ नहीं दिए तो उन्हें भी गुलामी की जिंदगी जीनी पड़ेगी और आने वाली पीढ़ियाँ उन्हें माफ़ नहीं करेंगी। खैर वे तो अंग्रेजो के साथ मिलकर भी सरकार चलते थे तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन हर स्वाभिमानी आदमी को चाहे वह किसी भी देश का हो उसे चीन के सामान का बायकॉट करना चाहिए। साथ ही साथ सभी लोगो को अपने मतभेद भुला कर इस दानव के साथ जंग में भारत का साथ देना चाहिए।
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