राम मंदिर का निर्माण शुरू हो गया है। हर तरफ उत्साह है। जो लोग कल तक निजी स्वार्थ के लिए इसका विरोध कर रहे थे आज वे भी इसके समर्थन में आ गए है और इस ऐतिहासिक पल के साक्षी बनना चाहते है। हालाँकि कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से बहुत कम लोगो की उपस्थिति में राम मंदिर का भूमि पूजन हुआ।
यह
भी ध्यान देने वाली बात
है कि जब एक
तरफ आज इतना शुभ
काम शुरू हुआ उस
समय देश और विदेश
में परिस्थितियां कैसी है ? हर तरफ कोरोना
महामारी का संक्रमण बढ़ता
जा रहा है। चीन जैसा विकराल
दानव सीमा पर खड़ा
है। उसकी
सह पाकर पिछले बीस
वर्षो से देश के
माहौल में जहर घोलने
वाला पडोसी मुल्क पाकिस्तान हमेशा खड्यंत्र करता रहता है। और
तो और हमारा अपना
नेपाल जो कि हमारी
ही सभ्यता और संस्कृत का
हिस्सा रहा है वह
भी तरह तरह के
खड्यंत्र में बराबर का
भागीदार बन रहा है। इन
सब परिस्थितियों को देख कर
कभी कभी लगता है
कि यह दुनिया किधर
जा रही है ? क्या
परस्पर सहयोग, प्रेम और सौहाद्र कि
चीजें अब अतीत का
विषय बन जाएगी ? पाकिस्तान
के तमाम नागरिक भारत
में गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए आते
हैं और उन्हें सारी
सुविधाएं दी जाती हैं।
इमरान खान जब कैंसर
का अस्पताल पाकिस्तान में बनवा रहा
था तो चंदा मांगने
के लिए हिन्दुस्थान भी
आया था। भारतीय
टीम ने उसकी मदद
के लिए एक क्रिकेट
मैच भी खेला था।
तमाम वस्तुओ का एक दूसरे
से आदान प्रदान होता
हैं फिर क्या चीज
हैं जो एक दूसरे
का दुश्मन बना रही हैं
? नेपाल के तो क्या
कहने ? करीब तीस से
चालीस लाख लाख नेपाली
लोग भारत में रहते
हैं उन्हें किसी भी देश
से ज्यादा सुविधाएं दी जाती हैं। हमारे
खुद के बहुत सारे
नेपाली मित्र हैं जोकि अपनी
मेहनत और ईमानदारी से
हमारे समाज का एक
अभिन्न हिस्सा हैं। उन्हें
कोई विदेशी नहीं समझता बल्कि
एक अपने पन का
हिस्सा मानता हैं फिर किस
बात कि शत्रुता खाये
जा रही हैं ?
कई दिन से इस बात को समझने की कोशिश कर रहा था लेकिन तह तक पहुँच नहीं पा रहा था। इसी बीच एक आध्यात्मिक पुस्तक पढ़ने का अवसर मिला तो इसके असली रहस्य की परतें खुलनी शुरू हुई। आज के समय में करीब हर विकाश शील देश एक ही तरह की शिक्षा और संस्कार परआगे बढ़ रहा हैं जिसमे धन को ही धर्म मान लिया गया हैं। जिसकी जितनी बड़ी आर्थिक स्थिति उसकी उतनी बड़ी बड़ी सामाजिक स्थिति। जो धनी वही बड़ा, जो बड़ा कहे वही सही। लक्ष्मी जी की इस माया में सभी भ्रम की जिंदगी में पड़े हुए हैं। भगवान १६ कलाओं से युक्त होते हुए भी वो अप्राकट्य नित्य और निरन्तन हैं और इसी तरह से रुपये में १६ आने होते हैं। इस भ्रम में जब मनुष्य रुपयों की पूजा करने लगता हैं तो भगवान के अनुग्रह का मार्ग बंद हो जाते हैं। इस नुकसान का अनुमान लगाना आसान नहीं हैं।
इसी
विषय पर भगवान विष्णु
और माँ लक्ष्मी में
एक वार्तालाप के दौरान माँ लक्ष्मी ने कहा कि
दुनिया में सभी मेरी पूजा करते
है जबकि सौ क्या दस
लाख में भी एक
आदमी आपकी पूजा नहीं करता। इसका
कारण पता करने के
लिए उन दोनों ने
धरती पर आने का
निश्चय किया। इसके
लिए भगवान विष्णु
ने प्रकांड विद्वान की भेस भूसा
बनायीं। गेरुए
रंग के वस्त्र, मस्तक पर
तेज, गले में रुद्राक्ष
कि माला, हाँथ में पुस्तकों
से भरा थैला लिए
वे एक गांव से
दूसरे गांव उपदेश देना
शुरू कर दिए ।
उनकी विद्वता और ओजपूर्ण उपदेश सुनकर कुछ लोग उनकी ओर आकृष्ट हुए। बहुत सारे लोग इकठ्ठा
होकर उनका उपदेश सुनते, तालियां बजाते थे।
कुछ ब्राह्मण लोगो ने उन्हें अपने घर दावत पर बुलाया और उन्हें सम्मानित किया।
यह
क्रम चल ही रहा था की लक्ष्मी जी एक तपस्विनी के रूप में प्रकट हुई। उन्होंने भी लोगो को आत्मिक उपदेश देने शुरू किये। उनका आशीर्वाद लेने के लिए महिलाओ की भीड़ इकठ्ठा
होने लगी। लोग उनका आशीर्वाद प्राप्त करने
के लिए उनको अपने घर भोजन पर बुलाने लगे। लोगो के बढ़ते प्रेम पूर्वक आमंत्रण को देख
कर तपस्विनी ने लोगो को अपनी प्रतिज्ञा बताई की वह किसी के घर में उपयोग में लाये बर्तन
में भोजन ग्रहण नहीं करेगी बल्कि अपने खुद के बर्तनो का उपयोग करेगी। जिसको एक महिला
ने स्वीकार कर लिया। उसके घर में जाकर तपस्विनी
के सोने के थाली, गिलाश, और चम्मच वगैरह अपने झोले से निकालकर उसमे ही भोजन ग्रहण किए। भोजन के पश्चात् सारे बर्तन उसी घर में छोड़ दिए। यह बात कई गावों में जंगल की आग की तरह फ़ैल गयी।
अभी तक जो लोग भगवान की पूजा और प्रवचन में व्यस्त थे वो भी सोने के बर्तन पाने के चक्कर में तपस्विनी को अपने घर बुलाने लगे लेकिन तपस्विनी ने कहा की वो उस गांव में कदम नहीं रख सकती जहाँ पर पंडित का प्रवचन या पूजा पाठ होता है। कुछ लोग समझाने का प्रयत्न किये लेकिन तपस्विनी ने एक न सुनी। अंत में सोने की लालच में गांव वालों ने पंडित की तरफ देखना भी बंद कर दिया उधर तपस्विनी सबको उपदेश और सोने चांदी के बर्तन देती रही। अपनी उपेक्षा देख कर भगवान नारायण वापस क्षीर सागर को वापस आ गए। कुछ समय पश्चात उनके पीछे पीछे लक्ष्मी जी भी वापस आ गयी।
आने
के बाद उन्होंने भगवान से उनका अनुभव पूछा।
भगवान ने स्वीकारोक्ति में शिर हिला कर कहा कि जो कुछ लक्ष्मी जी कहती थी वह
सही था। आज हर चीज में पैसा हैं। लोग शिक्षा और ज्ञान को भी पैसे के लिए ही प्रयोग
में ला रहे हैं। आज पढ़े लिखे लोग भी पैसे के
लालच में याचक बनकर अपनी मातृभूमि और संस्कृति को वीरान कर रहे हैं। क्या यही असली शिक्षा हैं ?
आज
के दौर में चीन निःसंदेह पैसे से मजबूत हैं।
पैसे के लालच में जब हमारे देश के तमाम सारे न्यूज़ चैनल, मीडिया, एक्सपर्ट और
पोलिटिकल लोग उसके समर्थन ने बोल सकते हैं तो नेपाल और पाकिस्तान को क्या कोसना ? लेकिन
यह भी सत्य है कि जहाँ भगवान नहीं वहां माँ लक्ष्मी भी ज्यादा दिन नहीं टिकती। आज नहीं कल चीन का आतंकी साम्राज्य छिन्न भिन्न
होगा जैसे रावण का हुआ था और तिब्बत जैसे धर्म भीरु देश दुनिया में शांति और प्रेम
का पथ पढ़ाएंगे। राम के मंदिर निर्माण के साथ देश में सत्य, प्रेम और धर्म और शांति
की भी नयी शुरुवात हो और पुरे विश्व में फैले। राम सबके है और सब राम के हैं। आप सभी को राम मंदिर की बधाई।
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