१५
अगस्त
को
हम
सभी
७5वा
स्वतंत्रता
दिवस
मना
रहे
हैं। जब
बच्चे
थे
तो
इस
दिन
एक
अलग
तरह
का
उत्साह
रहता
था।
प्रधान
मंत्री
लाल
किले
से
क्या
बोलेंगे। स्कूल
के
प्रिंसिपल
क्या
बोलेगे। स्वतंत्रता
सेनानियों
के
बारे
में
कुछ
बातें
होंगी। कृतज्ञता
प्रकट
की
जाएगी
और
उनके
सपने
को
किस
तरह
से
साकार
करना
हैं
उसका
कुछ
रोडमैप
बनेगा
इत्यादि
इत्यादि।
तब
हर
तकलीफ
के
लिए
हम
लोग
कहीं
न कहीं अंग्रेजो
को
दोष
देते
थे
कि
उन्होंने
हमारे
उद्योग
धंधे
नष्ट
कर
दिए। कच्चा
माल
यहाँ
से
लेकर
जाते
थे
बना
बनाया
मॉल
लाकर
यंहा
बेंचते
थे
और
उसमे
पैसे
कमाते
थे
इस
वजह
से
हम
गरीब
रह
गए।
बहुत
गुस्सा
भी
अंग्रेजो
के
ऊपर
आता
था।
तबसे
अब
चालीस
साल
बीतने
के
बाद
बहुत
बदलाव
आ गया। गांव तक
पक्की
सड़के
बन
गयी
इसके
लिए
अटल
बिहारी
बाजपेयी
की सड़क
योजना
को
धन्यवाद्। बिजली
भी
पहुंच
गयी। इतने
बदलावों
के
बाद
भो
हम
अपने
आप
को
दुनिया
में
बहुत
पिछड़ा
पाते
हैं
क्यूंकि
दुनिया
शायद
ज्यादा
रफ़्तार
से
आगे
बढ़ी या
हम
कहीं
पीछे
रह
गए
?
खैर
सब
कुछ
बदला
सिवाय
हमारी
प्रकृति
के। पहले
हम
अंग्रेजो
को
दोष
देते
थे
अब
हम
सरकार
को
दोष
देते
हैं सरकार
अपने
से
पहले
की सरकारों
को
दोष
देती
हैं
। उसके
पहले
की सरकारे
अंग्रेजो
को
दोष
देती
थीं। तो
हमारा
दुसरो
के
ऊपर
दोष
मढ़ने
कर
तरीका
अभी
भी
निर्बाध
रूप
से
चल
रहा
हैं,
वह
तनिक
भी
नहीं
बदला।
अब
तो
करीब
करीब
हर
सरकार
के
पास
कोरोना
रूपी
बहाना
रेडीमेड
में
उपलब्ध
है।
यह
तुलना
इस
लिए
जरुरी
हैं
क्यूंकि
तभी
हम
अपने
आपको
सही
मायने
में
परख
पाते
हैं। जर्मनी
और
जापान
जोकि
दूसरे
विश्व युद्ध
में
तबाह
हो
गए
थे
वे
कहीं
न कहीं हमसे
बहुत
आगे
हैं
न सिर्फ तकनीक
के
मामले
में
बल्कि
शिक्षा
और
प्रतिव्यक्ति
आय
के मामले
में
भी। ये
चीजे
यह
सोचने
पर
मजबूर
करती
है
कि
हमारे
यहाँ
किस
बात
की कमी
है। पैसे
नहीं
है
या
प्राकृतिक
श्रोत
नहीं
है
? प्राकृतिक
संसाधनों
से
संपन्न
होते
हुए
भी
हमारी
हालत
आज
इतनी
ख़राब
क्यों
है। सब
कुछ
समझ
कर
इस
निष्कर्ष
पर
पहुंचते
है
कि
जो
कुछ
हम
बोलते
है
और
जो
करते
है
उसमे
कोई
तालमेल
नहीं
है।
राजनीती
इतनी
फायदेमंद
व्यापार
हो
गयी कि
सन्यासी,
व्यापारी,
नौकरशाह
या
अपराधी
सभी
इसमें
अपना
हाँथ
आजमाने
लगे।
और
तो
और
सुनने
में
यह
भी
आता
है
कि
विदेशी
ताकते
भी
अपने
पसंद
के
राजनैतिक
दलों
को
चंदे
देती
है
या
अप्रत्यक्ष
तरीके
से
सहयोग
करने
लगी
है। सबसे
हैरान
करने
वाला
मामला
तो
तब
आया
जब
एक
राजनैतिक
दल
ने
एक
दुश्मन देश
के
साथ
ही
समझौता
कर
लिया।
खैर इस मौके पर हम पूर्व प्रधान मंत्री की निम्न कविता के बारे में बात करते है जिसमे उन्होंने लिखा है कि आज़ादी अधूरी है। जिसमे उन्होंने पूरी आज़ादी पाने के लिए कमर कसने और बलिदान करने की बात कही है |
पंद्रह अगस्त का दिन कहता, आज़ादी अभी अधूरी है।
सपने सच होने बाकी है, रावी की शपथ न पूरी है।।
जिनकी लाशों पर पग धर कर, आज़ादी भारत में आई।
वे अब तक हैं खानाबदोश, ग़म की काली बदली छाई।।
कलकत्ते के फुटपाथों पर, जो आँधी-पानी सहते हैं।
उनसे पूछो, पंद्रह अगस्त के, बारे में क्या कहते हैं।।
हिंदू के नाते उनका दु:ख, सुनते यदि तुम्हें लाज आती।
तो सीमा के उस पार चलो, सभ्यता जहाँ कुचली जाती।।
इंसान जहाँ बेचा जाता, ईमान ख़रीदा जाता है।
इस्लाम सिसकियाँ भरता है, डालर मन में मुस्काता है।।
भूखों को गोली नंगों को, हथियार पिन्हाए जाते हैं।
सूखे कंठों से जेहादी, नारे लगवाए जाते हैं।।
लाहौर, कराची, ढाका पर, मातम की है काली छाया।
पख्तूनों पर, गिलगित पर है, ग़मगीन गुलामी का साया।।
बस इसीलिए तो कहता हूँ, आज़ादी अभी अधूरी है।
कैसे उल्लास मनाऊँ मैं?,थोड़े दिन की मजबूरी है।।
दिन दूर नहीं खंडित भारत को , पुन: अखंड बनाएँगे।
गिलगित से गारो पर्वत तक, आज़ादी पर्व मनाएँगे।।
उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से, कमर कसें बलिदान करें।
जो पाया उसमें खो न जाएँ, जो खोया उसका ध्यान करें।।
वर्तमान राजनैतिक और आर्थिक हालत देख कर आप समझ ही रहे होंगे की हमारी आज़ादी कितनी पूर्ण है ? संभवतः हमारी सरकार भी अटल जी की इस कविता का मर्म को समझती होगी। इस लिए दोस्तों शायद यह समय उल्लास से ज्यादा अपने देश को मजबूत करने का समय है। क्युकि चुनौतियां हटी नहीं है बल्कि बदल गयी है। पहले ब्रिटैन से परेशान थे अब उसकी जगह चीन ने ले ली हैं वह तमाम देशो को पैसे देकर गुलाम बना रहा हैं। हमारे देश पर भी प्रति व्यक्ति करीब १ लाख का विदेशी कर्ज हैं।
इस
लिए
हम
सभी
अपने
अपने
दायित्वों
का
पूरी
मेहनत
और
ईमानदारी
से
निर्वाहन
करें। देश
की
मजबूती
में
ही
हमारी
मजबूती
और
स्वतंत्रता
निहित
हैं। स्वतंत्रता
पाने
के
साथ
उसे
अक्षुग्ण
रखना
हम
सभी
की
जिम्मेदारी
हैं। जय
हिन्द। एक
बार
फिर
से
सभी
को
स्वतंत्रता
दिवस
की
शुभकामनाये।
Co-Authors- Seema Pandey and Richa Pandey
1 Comments
Very nice
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