Image Credit -facultyfocus.com |
रविवार का दिन था, दोपहर के डेढ़ बज रहे थे, मै खाना खा के उठा ही था कि मेरे मित्र शंकर का फ़ोन आ गया| उसने बताया की उमा की तबियत अचानक ख़राब हो गयी है| कृपया उसे देख कर कुछ दवा दे दें | सामान्यतया हम लोगो को किसी के घर जाकर दवा देने की इजाजत नहीं है लेकिन स्थिति की गंभीरता को देखते हुए, सारे लक्छणो को समझ कर दवा बना कर थोड़ी देर में मै उनके घर पहुँच गया | घर पर जाकर दवा देने के बाद हम आपस में बातें करने लगे | हमारी कोशिश तबियत ख़राब होने की वजह जानने की थी | बातचीत में पता चला कि उमा के छोटे भाई जो कि ३५ साल का था, की मृत्यु हो गयी थी | इस वजह से उमा सदमे में थी | थोड़ा और बातचीत में मामला समझ में आया कि उमा के मायके वालो और शंकर में बातचीत बहुत दिनों से बंद थी | शंकर को तकलीफ थी कि उमा के मायके वालो ने कठिन समय में उसको सहयोग नहीं किया और उसके बारे में भला बुरा कहा | जिसके बाद रिश्ते ख़राब होते गए और आना जाना भी बंद हो गया |
रिश्ते ख़राब होने की वजह क्या होती है ?
दोस्तों इस तरह की परिस्थितिया हम सभी के जीवन में आ जाती ह्नै और आपस में गलत फहमियां हो जाती हैं और सम्बन्ध ख़राब हो जाते हैं | कई मामलो में तो देखने में आया हैं कि लोग एक दूसरे की खुशियों और तकलीफो में भी शामिल होना बंद कर देते हैं | क्या सचमुच परिस्थितिया हाँथ से बाहर हो जाती हैं या हम हो जाने देते हैं ? ग़लतफ़हमी हो जाने पर हमें क्या करना चाहिए ? क्या जिससे हमको तकलीफ हुई हैं उसे माफ़ कर देना चाहिए ? या खुद से गलती हुई हैं तो माफ़ी मांग लेनी चाहिए ?
संबंधो की जरुरत
जैसा कि हम जानते हैं कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं | दैनिक जीवन में हमें एक दूसरे की जरुरत पड़ती रहेगी, इसी लिए रिश्ते, नाते, और समाज सबका गठन हुआ हैं | कोई भी प्राणी अकेले में जीवन नहीं व्यतीत कर सकता हैं | इस बात का अहसास कोरोना युग हम लोग सोशल डिस्टन्सिंग, आइसोलेशन और क्वारंटाइन के माध्यम से कर ही रहे है | इसके लिए हमें जीवन की मधुरिमा को समझना पड़ता हैं जिसके लिए मानव मूल्यों की रचना हुई हैं जिसको हम सब सत्य, धर्म, प्रेम, शांति और अहिंसा के नाम से जानते हैं| इन सभी तत्वों में प्रेम विजली की तरह हैं| बाकी के तत्व तभी प्रकाशित होंगे जब उनमे प्रेम का संचार बना रहेगा| इस तरह हम कह सकते हैं कि जीवन में प्रेम की आवश्यकता सबसे ज्यादा हैं | रिश्ते भी तभी प्रगाढ़ रहते हैं जब उनमे प्रेम रहता हैं अन्यथा वो भी एक मज़बूरी बन जाते हैं | हमको यह समझना होगा कि परिवार या समाज एक वृक्ष कि तरह होता है जिसमे हम शाखाये या टहनियों कि तरह अलग अलग दिशा में बढ़ सकते हैं लेकिन सबको सबकी जड़ एक ही होती है |
अब सवाल उठता हैं की अगर किसी की बात या व्यवहार न पसंद आये या उससे हमें तकलीफ हो तो क्या करे ? क्या चुप रह जाये या दूसरे को अपनी भावनावो से अवगत करा दें ?
क्या रिश्तों पैर कैची चला दें ?
दोस्तों अगर किसी से किसी बात को लेकर अगर झगड़ा हो जाये तो हमारे पास दो रास्ते होते हैं पहला हम आपस में बात बातचीत करना बंद कर दें और रिश्ता खत्म कर दें | जिसको की रिश्तों पर कैंची चलाना कहते है | यह सबसे आसान लेकिन बहुत मंहगा तरीका होता है| इसमें हम अपने अहम् को तो संतुष्ट कर लेते है लेकिन हम बहुत सारी खुशियों से वंचित रह जाते है | सोचिये वह समय कितना तकलीफ भरा रहता होगा जब अपने ही रिश्तेदारों की शादी व्याह और अन्य खुशियों में शामिल न हो पाये ? या आपके किसी ख़ुशी के मौके पर आपके कोई रिश्तेदार न आये ? हम पूरी जिंदगी उस पल की कमी महसूस करते हैं | कोई भी संपत्ति उस कमी को पूरा नहीं कर पाती | एक दिन ऐसा जरूर आता हैं जब हमारे अहम् पर हमारी आत्मा हावी होती हैं और हमें अपनी गलती का एहसास होता है | ऐसा हमने अपने बचपन में कई बार महसूस किया है और अभी भी कर रहे हैं |
या रिश्तों में आ गयी गांठ को खोल दें ?
दूसरा तरीका जिसको रिश्तों की गांठ खोलना कहते हैं | उसमे हम अपनी बात एक दूसरे से कहते या सुनते हैं और
जरुरी हुआ तो अपनी गलती की माफ़ी मंगाते हैं या माफ़ कर देते हैं | यह कदम बहुत ही कठिन होता हैं क्यूंकि इसमें अपने अहम् को वश में करना पड़ता हैं लेकिन इसके फायदे बहुत ज्यादा होते हैं क्यूंकि एक बार अहम् खत्म हो जाता हैं तो धीरे धीरे परिस्थितिया सामान्य हो जाती हैं और प्रेम और सौहाद्र लौट आता है और हम ख़ुशी और दुःख के पल साथ साथ बिताते है| हमारी संगठन शक्ति मजबूत रहती है, यह हमारे भविष्य के लिए बहुत अच्छा रहता है |
मैं खुद क्या करता हूँ?
मै तो अब दूसरे विकल्प को चुनता हूँ | इसके बहुत ही अच्छे परिणाम भी मिले है| उपर्युक्त केस में ही देख ले उमा और शंकर ने शुरुआत में एक दूसरे के बारे में अपनी तकलीफे व्यक्त की और बाद में खुद एक दूसरे को समझने का प्रयास करने लगे | शंकर उमा को लेकर उसके मायके गया और धीरे धीरे उनके जीवन में प्रेम की बयार बहने लगी|
आपको क्या पसंद करते है ?
दोस्तों गलतफ़हमियों का हल निकालने के बारे में आप कौन सा तरीका पसंद करते है ? कृपया कमेंट सेक्शन में अपने विचार व्यक्त करे | अगर आपके रिश्तो में भी कही गांठ पड़ गयी है तो देर न करे और उसे जल्दी से खोलने का प्रयाश करे| |
क्या यही नियम सोसाइटी में भी लागु होता है ?
मेरे हिसाब से रिश्ते नाते सब एक ही तरह के होते हैं चाहे हमारे गांव या मोहल्ले के हो या हमारी सोसाइटी के हो| यंहा पर भी हमारे पास दोनों ही विकल्प उपलब्ध होते हैं | हमारी सोसाइटी हैं क्या ? यह बात अलग हैं की नुक्लिअर फॅमिली और जिंदगी की भागम भाग में हमें अपने अड़ोस पड़ोस का कुछ पता नहीं रहता अगर थोड़ा शांति से सोचें तो पाएंगे की हमारे पडोसी के अंकल, आंटी, भाई, भाभी, बच्चे सब मिलकर एक बड़ी फॅमिली ही हैं | शिप्रा सनसिटी तो अपने आप में एक मिनी इंडिया ही है जिसमे हम सभी मिलकर सारे फेस्टिवल जैसे की होली, दीपावली, वैशाखी, लोहड़ी, दुर्गापूजा, अयप्पा पूजा क्रिसमस आदि मानते थे | अब जबकि कोरोना महामारी ने सोशल डिस्टैन्सिंग बढ़ा दी है आइये हम दिल से एक दूसरे को अपना प्यार और सम्मान दें | सभी को ईस्टर की शुभकामनाये |
कृपया निम्न लेख को अवश्य पढ़े
Real Meaning and Importance of Easter
क्या यही नियम सोसाइटी में भी लागु होता है ?
मेरे हिसाब से रिश्ते नाते सब एक ही तरह के होते हैं चाहे हमारे गांव या मोहल्ले के हो या हमारी सोसाइटी के हो| यंहा पर भी हमारे पास दोनों ही विकल्प उपलब्ध होते हैं | हमारी सोसाइटी हैं क्या ? यह बात अलग हैं की नुक्लिअर फॅमिली और जिंदगी की भागम भाग में हमें अपने अड़ोस पड़ोस का कुछ पता नहीं रहता अगर थोड़ा शांति से सोचें तो पाएंगे की हमारे पडोसी के अंकल, आंटी, भाई, भाभी, बच्चे सब मिलकर एक बड़ी फॅमिली ही हैं | शिप्रा सनसिटी तो अपने आप में एक मिनी इंडिया ही है जिसमे हम सभी मिलकर सारे फेस्टिवल जैसे की होली, दीपावली, वैशाखी, लोहड़ी, दुर्गापूजा, अयप्पा पूजा क्रिसमस आदि मानते थे | अब जबकि कोरोना महामारी ने सोशल डिस्टैन्सिंग बढ़ा दी है आइये हम दिल से एक दूसरे को अपना प्यार और सम्मान दें | सभी को ईस्टर की शुभकामनाये |
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1 Comments
सुंदर एवं प्रेरणादायक लेख👌👌😊
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