जैसा की हम सब जानते ह्नै की मनुष्य जीवन की चार अवस्थायेहोती है| लम्बे समय तक माँ के पेट में ही उसी के द्वारा हमारा पालन पोषण होता है | कुछ भी वो खाती है उसी से हमारा भी पोषण होता है| जब हम इस दुनिया में आते है तो काफी कुछ अनजान से रहते है | वही हमारे खाने पीने का ख्याल रखती है| बाकी परिवार के साथ मिल कर हमें इस दुनिया में रहना, पढ़ना लिखना, और उठना बैठना सिखाती है| जीवन के अगले चरण में हम अध्ययन के द्वारा अपना शारीरिक और मानसिक विकास करते है | फिर नौकरी या व्यवसाय द्वारा परिवार और समाज को कुछ देने का प्रयास करते है | फिर एक समय आता है जब शरीर कमजोर पड़ने लगता है| याददास्त भी कमजोर हो जाती है | हम दुबारा से औरो के ऊपर आश्रित हो जाते है| यह क्रम यु ही चलता रहता है |
पिता हमारे भविष्य की उम्मीदों का बोझ लिए हुए इस संसार में तमाम मुसीबतो से लड़ता है | मान अपमान सहता है| शायद भविष्य की उम्मीदे ही सभी की लड़ने की सामर्थ्य देती है| जब हम स्कूल में पढ़ रहे होते है तो वंहा हम अकेले नहीं होते| वंहा हमारे माँ बाप के सपने होते है| उनकी खुशियाँ और उम्मीदे भी हमारे साथ होती है|
जब हम छोटे होते है तो हम अपने शौक अपने माँ बाप को बताते है कि हमको ये खिलौना चाहिए, इस रंग का बैग चाहिए, ऐसे जूते चाहिए, जैसे वो लड़का या लड़की पहन कर आयी है वैसे कपडे चाहिए वगैरह वगैरह| हर माँ बाप उसे अपनी सामर्थय के अनुसार पूरा करने का प्रयत्न करता है | उस समय वो लोग यह तर्क नहीं लगाते की हमारी ये मांग उचित या अनुचित है| उन्हें पूरा करने में उन्हें ही ख़ुशी मिलती है| एक तरह से हमारी ख़ुशी में ही उनकी ख़ुशी छुपी होती है|
लेकिन जब वही माँ बाप बुड्ढे हो जाते है फिर क्या होता है| आप सभी ने महाभारत सीरियल टीवी पर देखा होगा| जिसमे पितामह भीष्म बाणो की सैया पर कई महीनो तक पड़े रहे थे| ये एक कहानी की तरह हम सभी ने इसे पढ़ा है| पर इसका व्यावहारिक मतलब क्या है | एक अपने ज़माने का सर्वश्रेष्ठ योद्धा बाणो की सैया पर? ये बाणो की सैया है ? वाकई ? हमको तो कुछ और समझ में आता है | बाण तो एक दिखाने का भौतिक माध्यम है असली पीड़ा बाणो की नहीं, असली पीड़ा तो स्वार्थ की है| हमारे जीवन में समाये लालच की है| जिसका कभी अंत नहीं होता| यह हमेशा बढ़ता ही जाता है | क्या यह दुर्योधन की लालच ही नहीं थी जिसने पूरी जिंदगी उसे नकारात्मक आचार विचार और व्यवहार के लिए विवश किया| एक बार उसने नहीं सोचा की वह भी वृद्ध होगा तो क्या सब कुछ साथ लेके जायेगा या उसके बच्चे इतने लायक होंगे ?
इस तरह से बहुत से उदहारण देखने को सहज ही मिल जाते है| डालमिआ औद्योगिक समूह के एक फाउंडर का केस मीडिया में आया था जिसमे वो उम्र के अंतिम पड़ाव पर किराये के मकान में रहने को विवश हो गए थे | वृद्धाश्रम आजकल बहुत सामान्य सी चीज हो गयी है | ज्यादातर इनमे आने वाले वृद्ध संभ्रांत परिवारों से आते है | हमें याद है महिला दिवस के दिन हमने अपने सभी जानने वाली महिला को व्हाटअप पर बधाई दी | उनमे से एक आंटी हमको मेट्रो ट्रैन में मिली थी उनको हमने दर्द वगैरह की दवाये दी थी | जब उनको लाभ हुआ तो आगे भी बात होने लगी | उन आंटी ने बहुत भावुक होकर फ़ोन किया और रोने लगी| वो बतायी की घर पर इनसे कोई बात नहीं करता | इसी तरह से एक बार मेडिकल कैंप में हमने एक आंटी को ज्यादा मसालेदार खाना न खाने की सलाह दी तो वो बोली की बेटे बहु कहते है की जो घर में बनेगा वही खाना पड़ेगा | अपने पसंद का खाना खाना हो तो अलग रहो|
एक चीज समझ में नहीं आती कि बच्चो और पत्नी की हर जरुरत को हम प्राथमिकता देते है | इसमें कोई बुराई भी नहीं है | हालाँकि बच्चा आपके लिए कुछ करेगा या नहीं करेगा इसकी कोई गारंटी नहीं है | लेकिन जो हमारे लिए सबकुछ कर चुके है उनसे हम कैसे मुँह मोड़ लेते है|
दोस्तों आप मुझे भी कोई श्रवण कुमार मत समझना| हम भी अपने माँ बाप के लिए बहुत कुछ नहीं कर पाए है| हमने अपनी तीन पीढ़िया ऐसे ही रहती देखी है | चौथी पीढ़ी में कुछ बहुत खास बदलाव की उम्मीद नहीं करनी चाहिए |
मानव जीवन तो स्वार्थ में अँधा है लेकिन प्रकृति तो माँ का रूप होती है | बच्चे जवान बुजुर्ग सभी का ख्याल रखने वाली | अब कोरोना नामक महामारी आ गयी है ये भी बुजुर्गो को ही परेशान कर रही है | इसमें भी जितने लोग मर रहे है वो ज्यादातर बुजुर्ग ही है | कहीं न कहीं इस महामारी और हमारी स्वार्थ लिप्सा में भी कुछ सम्बद्ध हो न हो लेकिन दोनों का रिजल्ट एक ही आ रहा है | जोकि मानवता के लिए बहुत ही दुखद है| आज सुनने में आ रहा है कि चीन, ईरान और इटली में बुजुर्गो को ट्रीटमेंट भी नहीं मिल पा रहा है क्युकी उनसे कोई स्वार्थ सिद्ध नहीं होगा| वो एक तरह से बोझ समझे जा रहे है | हो सकता है यह एक मज़बूरी हो लेकिन एक गलत परम्परा कि शुरुवात हो रही है |
ऐसे में प्रकृति से एक ही सवाल पूछने का मन करता है की माँ तू हमसे क्यों गुस्सा है?
दोस्तों प्रकृति से पूछने से पहले हम अपना व्यवहार सुधारे और अपने बुजुर्गो का ख्याल रखे| हमने अपने सभी बुजुर्गो को दवा के लिए घर न आने की सलाह दी है| हम फ़ोन पर उनका व्यौरा लेकर दवा उनके घर पहुंचने का बंदोबस्त कर रहे है| जिससे की कोरोना महामारी से उनको कोई नुकसान न हो |
ॐ साई राम |
लोका: समस्ता: सुखिनो भवन्तु
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः
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