कल फाइनेंस मिनिस्टर श्रीमती निर्मला ने बजट पेश किया। बजट आने के कुछ पहले से ही न्यूज़ पेपर और टीवी या कहे तो सोशल मीडिया पर इनकम टैक्स में छूट पर चर्चा शुरू हो जाती है। जाहिर है इस बार भी हुई।हर कोई चाहता है की टैक्स १० लाख तक कोई टैक्स ना लगे उसके ऊपर भी टैक्स स्लैब कम हो इत्यादि इत्यादि। यह उम्मीद गलत भी नहीं है। हर किसी को अपने तरीके से सोचने का अधिकार है।
पहले की तरह इस बार भी ऐसे ही हुआ। एक तरह से कहे तो ठनठन गोपाला। सारे ख्याली पुलाव बेकार। थोड़ी
ही देर में शेयर बाजार धड़ाम । सोशल मीडिया पर देश भक्ति का नशा उतर गया। मोदी और निर्मला
की बुराई शुरू। हमारे कुछ मित्रो को साहीन बाग़ में इस मुद्दे पर भी बहस की जरुरत महसूस
होने लगी। कुछ मित्र जिन्होंने एक भी पैसे आजतक इनकम टैक्स नहीं दिए है वो भी बीजेपी
को ग|ली देते नजर आये वो भी पूरी तरह से नाराज थे।
एक बार पूरी इकनोमिक सिस्टम को समझ कर देखे। मित्रो
क्या टैक्स में छूट सबसे अच्छा विकल्प है क्या ? मैंने १९९६ से टैक्स की पढाई शुरू
की तबसे हमे थोड़ा थोड़ा याद है की किस सरकार ने सबसे ज्यादा छूट दी है। बीजेपी या कांग्रेस
ने ? करीब १९९8 से २००४ तक बीजेपी सरकार थी उसे बाद १० साल तक कांग्रेस की सरकार। फिर
बीजेपी। १९९७ से पहले भी चिदंबरम कांग्रेस सरकार में फाइनेंस मिनिस्टर थे बाद में भी बने। बाजपयी सरकार
में यशवंत सिन्हा सबसे ज्यादा समय तक फाइनेंस मिनिस्टर थे। अगर सबसे ज्यादा टैक्स में
छूट किसी फाइनेंस मिनिस्टर ने दिया तो वो है अपने पी चिदंबरम। लेकिन क्या फाइनेंस मिनिस्टर
ही अपने दम पर टैक्स स्लैब निश्चित कर सकता है ? शायद
नहीं। सायद यही एक डिपार्टमेंट है जो सरकार की आय को देखता है बाकि
सब तो केवल खर्चे वाले ही ह्नै।
अगर आप पिछले
२० -२५ वर्षो के इकनोमिक सिस्टम पर गौर करे तो पाएंगे की टैक्स में सबसे ज्यादा छूट
कांग्रेस ने दी। बीजेपी ने नहीं। लेकिन साथ
में फिस्कल डेफिसिट कांग्रेस के समय में बहुत बढ़ गयी थी। मुद्रा स्फीत क| कांग्रेस
के समय में बहुत बुरा हाल था। रक्षा सौदे कितने समय से रोक जे रखे गए थे। लेकिन साथ
में यह भी है की सबसे ज्यादा विदेशी कर्ज कांग्रेस ने लिया बीजेपी सरकार ने नहीं। इसबात
को ज्यादा बड़ा न करते हुए यह समझा जा सकता है की एक तरफ कांग्रेस विदेशी कर्ज बढाती
गयी वही बीजेपी आतंरिक श्रोत पर निर्भर रही। पहले हमारे नेता कर्ज के कटोरे के साथ
विदेश यात्राओं पर जाते थे और बड़े हे दीन हीन प्राणियों में गिने जाते थे लेकिन आज
शायद मामला कुछ अलग है। यह सरकार चाह कर भी मुफ्तखोरी की परंपरा को बंद नहीं केर सकती।
इसमें कोई भी सही या गलत नहीं है। सब विचार धाराओ का अंतर है। अगर हम एक भारत श्रेष्ठ
भारत की आशा करेंगे तो शायद आपको ये टैक्स सिस्टम उतना बुरा नहीं लगेगा। आप अपने देश
को टैक्स दे रहे है उसे सुन्दर बना रहे है। अगर सिर्फ खुद तक सोचेंगे तो जरूर आपको
ये सब बुरा लगेगा। निर्णय आपको करना है।
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